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को वो॒ऽन्तर्म॑रुत ऋष्टिविद्युतो॒ रेज॑ति॒ त्मना॒ हन्वे॑व जि॒ह्वया॑। ध॒न्व॒च्युत॑ इ॒षां न याम॑नि पुरु॒प्रैषा॑ अह॒न्यो॒३॒॑ नैत॑शः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ko vo ntar maruta ṛṣṭividyuto rejati tmanā hanveva jihvayā | dhanvacyuta iṣāṁ na yāmani purupraiṣā ahanyo naitaśaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कः। वः॒। अ॒न्तः। म॒रु॒तः॒। ऋ॒ष्टि॒ऽवि॒द्यु॒तः॒। रेज॑ति। त्मना॑। हन्वा॑ऽइव। जि॒ह्वया॑। ध॒न्व॒ऽच्युतः॑। इ॒षाम्। न। याम॑नि। पु॒रु॒ऽप्रैषाः॑। अ॒ह॒न्यः॑। न। एत॑शः ॥ १.१६८.५

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:168» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:4» वर्ग:6» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:23» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पुरुप्रैषाः) बहुतों से प्रेरणा को प्राप्त (ऋष्टिविद्युतः) ऋष्टि-द्विधारा खड्ग को बिजुली के समान तीव्र रखनेवाले (मरुतः) विद्वानो ! (वः) तुम्हारे (अन्तः) बीच में (कः) कौन (रेजति) कम्पता है और (जिह्वया) वाणी से (हन्वेव) कनफटी जैसे डुलाई जावें वैसे (त्मना) अपने से कौन तुम्हारे बीच में कम्पता है (इषाम्) और इच्छाओं के सम्बन्ध में (धन्वच्युतः) अन्तरिक्ष में प्राप्त मेघों के (न) समान वा (अहन्यः) दिन में प्रसिद्ध होनेवाले (एतशः) घोड़े के (न) समान (यामनि) मार्ग में तुम लोगों को कौन संयुक्त करता है ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जब जिज्ञासु जन विद्वानों के प्रति पूछें तब विद्वान् जन इनके लिये यथार्थ उत्तर देवें ॥ ५ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे पुरुप्रैषा ऋष्टिविद्युतो मरुतो वोऽन्तः को रेजति। जिह्वया हन्वेव त्मना को वोऽन्ता रेजति। इषां धन्वच्युतो मेधा नाहन्य एतशो न यामनि युष्मान् कः संयुनक्ति ॥ ५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कः) (वः) युष्माकम् (अन्तः) मध्ये (मरुतः) विद्वांसः (ऋष्टिविद्युतः) ऋष्टिर्विद्युदिव येषान्ते (रेजति) कम्पते (त्मना) आत्मना (हन्वेव) यथा हनू तथा (जिह्वया) वाचा (धन्वच्युतः) धन्वनोऽन्तरिक्षाच्च्युताः प्राप्ताः (इषाम्) इच्छानाम् (न) इव (यामनि) मार्गे (पुरुप्रैषाः) बहुभिः प्रेरिताः (अहन्यः) अहनि भवः (न) इव (एतशः) अश्वः। एतश इत्यश्वना०। निघं० १। १४। ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यदा जिज्ञासवो विदुषः प्रति पृच्छेयुस्तदा विद्वांस एभ्यो याथातथ्यमुत्तराणि दद्युः ॥ ५ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जेव्हा जिज्ञासू लोक विद्वानांना प्रश्न विचारतात तेव्हा विद्वानांनी त्याचे यथार्थ उत्तर द्यावे. ॥ ५ ॥