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गौर॑मीमे॒दनु॑ व॒त्सं मि॒षन्तं॑ मू॒र्धानं॒ हिङ्ङ॑कृणो॒न्मात॒वा उ॑। सृक्वा॑णं घ॒र्मम॒भि वा॑वशा॒ना मिमा॑ति मा॒युं पय॑ते॒ पयो॑भिः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

gaur amīmed anu vatsam miṣantam mūrdhānaṁ hiṅṅ akṛṇon mātavā u | sṛkvāṇaṁ gharmam abhi vāvaśānā mimāti māyum payate payobhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

गौः। अ॒मी॒मे॒त्। अनु॑। व॒त्सम्। मि॒षन्त॑म्। मू॒र्धान॑म्। हिङ्। अ॒कृ॒णो॒त्। मात॒वै। ऊँ॒ इति॑। सृक्वा॑णम्। घ॒र्मम्। अ॒भि। वा॒व॒शा॒ना। मिमा॑ति। मा॒युम्। पय॑ते। पयः॑ऽभिः ॥ १.१६४.२८

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:164» मन्त्र:28 | अष्टक:2» अध्याय:3» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:22» मन्त्र:28


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (वावशाना) निरन्तर कामना करती हुई (गौः) गौ (मिषन्तम्) मिमयाते हुए (वत्सम्) बछड़े को तथा (मूर्द्धानम्) मूड़ को (अनु, हिङ्, अकृणोत्) लखकर हिंकारती अर्थात् मूंड़ चाटती हुई हिंकारती है और (मातवै) मान करते (उ) ही के लिये उस बछड़े के दुःख को (अमीमेत्) नष्ट करती वैसे (पयोभिः) जलों के साथ वर्त्तमान पृथिवी (घर्मम्) आतप को (सृक्वाणम्) रचते हुए दिन को और (मायुम्) वाणी को प्रसिद्ध करती हुई (पयते) अपने भचक्र में जाती है और सुख का (अभि, मिमाति) सब ओर से मान करती अर्थात् तौल करती है ॥ २८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे गौओं के पीछे बछड़े और बछड़ों के पीछे गौएँ जातीं वैसे पृथिवियों के पीछे पदार्थ और पदार्थों के पीछे पृथिवी जाती है ॥ २८ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे मनुष्या यथा वावशाना गौर्मिषन्तं वत्सं मूर्द्धानमनु हिङ्ङकृणोत् मातवा उ वत्सस्य दुःखममीमेत् तथा पयोभिस्सह वर्त्तमाना गौः पृथिवी घर्मं सृक्वाणं दिनं मायुं च कुर्वती पयते सुखमभिमिमाति ॥ २८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (गौः) पृथिवी धेनुर्वा (अमीमेत्) मिनाति (अनु) (वत्सम्) (मिषन्तम्) शब्दयन्तम् (मूर्द्धानम्) मस्तकम् (हिङ्) हिंकारम् (अकृणोत्) करोति (मातवै) मानाय (उ) वितर्के (सृक्वाणम्) सृजन्तं दिनम् (घर्मम्) आतपम् (अभि) (वावशाना) भृशं कामयमाना (मिमाति) मिमीते। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (मायुम्) वाणीम्। मायुरिति वाङ्ना०। निघं० १। ११। (पयते) गच्छति (पयोभिः) जलैस्सह ॥ २८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा गा अनुवत्सा वत्साननु गावो गच्छन्ति तथा पृथिवीरनुपदार्थाः पदार्थाननु पृथिव्यो गच्छन्ति ॥ २८ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी गाईच्या मागे वासरं व वासरांच्या मागे गाई जातात तसे पृथ्वीच्या मागे पदार्थ व पदार्थाच्या मागे पृथ्वी जाते. ॥ २८ ॥