वांछित मन्त्र चुनें

यत्ते॑ सा॒दे मह॑सा॒ शूकृ॑तस्य॒ पार्ष्ण्या॑ वा॒ कश॑या वा तु॒तोद॑। स्रु॒चेव॒ ता ह॒विषो॑ अध्व॒रेषु॒ सर्वा॒ ता ते॒ ब्रह्म॑णा सूदयामि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yat te sāde mahasā śūkṛtasya pārṣṇyā vā kaśayā vā tutoda | sruceva tā haviṣo adhvareṣu sarvā tā te brahmaṇā sūdayāmi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। ते॒। सा॒दे। मह॑सा। शूकृ॑तस्य। पार्ष्ण्या॑। वा॒। कश॑या। वा॒। तु॒तोद॑। स्रु॒चाऽइ॑व। ता। ह॒विषः॑। अ॒ध्व॒रेषु॑। सर्वा॑। ता। ते॒। ब्रह्म॑णा। सू॒द॒या॒मि॒ ॥ १.१६२.१७

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:162» मन्त्र:17 | अष्टक:2» अध्याय:3» वर्ग:10» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:22» मन्त्र:17


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! (यत्) जो (ते) तेरे (सादे) स्थित होने में (महसा) अत्यन्त बल से (शूकृतस्य) शीघ्र उत्पन्न किये हुए पदार्थों के (पार्ष्ण्या) छूनेवाले पदार्थ से (वा) वा (कशया) जिससे प्रेरणा दी जाती उस कोड़ा से घोड़े को (तुतोद) प्रेरणा देवे (वा) वा (अध्वरेषु) न नष्ट करने योग्य यज्ञों में (हविषः) होमने योग्य वस्तु के (स्रुचेव) जैसे स्रुचा से काम बनें वैसे (ता) उन कामों को प्रेरणा देवे (ता) उन (सर्वा) सब (ते) तेरे कामों को (ब्रह्मणा) धन से मैं (सूदयामि) अलग अलग करता हूँ ॥ १७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे विद्वान् जन कोड़ा वा बेंत से घोड़े को, पनेड़ी से बैलों को, अंकुश से हाथी को अच्छी ताड़ना दे उनको शीघ्र चलाते हैं, वैसे ही कलायन्त्रों से अग्नि को अच्छे प्रकार चलाकर विमान आदि यानों को शीघ्र चलावें ॥ १७ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे विद्वन् यद्यस्ते सादे महसा बलेन शूकृतस्य पार्ष्ण्या वा कशयाऽश्वं तुतोद वाऽध्वरेषु हविषः स्रुचेव ता तानि तुतोद ता सर्वा ते ब्रह्मणाऽहं सूदयामि ॥ १७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यः (ते) तव (सादे) स्थितौ (महसा) महता (शूकृतस्य) शीघ्रं निष्पादितस्य (पार्ष्ण्या) स्पर्शकारकेन (वा) (कशया) प्रेरकया (वा) (तुतोद) तुद्यात् प्रेरयेत् (स्रुचेव) (ता) तानि (हविषः) होतव्यस्य (अध्वरेषु) अहिंसनीयेषु यज्ञेषु (सर्वा) सर्वाणि (ता) तानि (ते) तव (ब्रह्मणा) धनेन (सूदयामि) क्षरयामि ॥ १७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा विद्वांसः कशया वेत्रेणाश्वं प्रतोदेन वृषभान् अंकुशेन हस्तिनं प्रातड्य सद्यो गमयन्ति तथैव कलायन्त्रैरग्निं प्रचाल्य विमानादि यानानि शीघ्रं गमयेयुः ॥ १७ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे जसे विद्वान घोड्याला वेताने, बैलाला चाबकाने व हत्तीला अंकुशाने मारतात व त्यांना त्वरित पळवितात, तसेच कलायंत्राने अग्नीला चांगल्या प्रकारे चालवून विमान इत्यादी याने शीघ्र चालवावीत. ॥ १७ ॥