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विश्व॒मित्सव॑नं सु॒तमिन्द्रो॒ मदा॑य गच्छति। वृ॒त्र॒हा सोम॑पीतये॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśvam it savanaṁ sutam indro madāya gacchati | vṛtrahā somapītaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विश्व॑म्। इत्। सव॑नम्। सु॒तम्। इन्द्रः॑। मदा॑य। ग॒च्छ॒ति॒। वृ॒त्र॒ऽहा। सोम॑ऽपीतये॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:16» मन्त्र:8 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:31» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अगले मन्त्र में उसी के गुणों का उपदेश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - यह (वृत्रहा) मेघ को हनन करनेवाला (इन्द्रः) वायु (सोमपीतये) उत्तम-उत्तम पदार्थों का पिलानेवाला तथा (मदाय) आनन्द के लिये (इत्) निश्चय करके (सवनम्) जिससे सब सुखों को सिद्ध करते हैं, जिससे (सुतम्) उत्पन्न हुए (विश्वम्) जगत् को (गच्छति) प्राप्त होते हैं॥८॥
भावार्थभाषाः - वायु आकाश में अपने गमनागमन से सब संसार को प्राप्त होकर मेघ की वृष्टि करने वा सब से वेगवाला होकर सब प्राणियों को सुखयुक्त करता है। इसके विना कोई प्राणी किसी व्यवहार को सिद्धि करने को समर्थ नहीं हो सकता॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तद्गुणा उपदिश्यन्ते।

अन्वय:

अयं वृत्रहेन्द्रः सोमपीतये मदायेदेव सवनं सुतं विश्वं गच्छति प्राप्नोति॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वम्) जगत् (इत्) एव (सवनम्) सर्वसुखसाधनम् (सुतम्) उत्पन्नम् (इन्द्रः) वायुः (मदाय) आनन्दाय (गच्छति) प्राप्नोति (वृत्रहा) यो वृत्रं मेघं हन्ति सः। ब्रह्मभ्रूणवृत्रेषु क्विप्। (अष्टा०३.२.८७) अनेन ‘हन’धातोः क्विप्। (सोमपीतये) सोमानां पीतिः पानं यस्मिन्नानन्दे तस्मै। अत्र सह सुपा इति समासः॥८॥
भावार्थभाषाः - वायुः स्वर्गमनागमनैः सकलं जगत्प्राप्य वेगवान् मेघहन्ता सन् सर्वान् प्राणिनः सुखयति, नैवैतेन विना कश्चित्कंचिदपि व्यवहारं साधितुमलं भवतीति॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - वायू आपल्या गमनागमनाने सर्व जगाला प्राप्त होणारा असून, वेगवान बनून मेघांद्वारे वृष्टी करवितो व सर्व प्राण्यांना सुखी करतो. त्याच्याशिवाय कोणताही प्राणी कोणताही व्यवहार सिद्ध करू शकत नाही. ॥ ८ ॥