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इन्द्रं॑ प्रा॒तर्ह॑वामह॒ इन्द्रं॑ प्रय॒त्य॑ध्व॒रे। इन्द्रं॒ सोम॑स्य पी॒तये॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indram prātar havāmaha indram prayaty adhvare | indraṁ somasya pītaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र॑म्। प्रा॒तः। ह॒वा॒म॒हे॒। इन्द्र॑म्। प्र॒ऽय॒ति। अ॒ध्व॒रे। इन्द्र॑म्। सोम॑स्य। पी॒तये॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:16» मन्त्र:3 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:30» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अगले मन्त्र में इन्द्र शब्द से तीन अर्थों का उपदेश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हम लोग (प्रातः) नित्यप्रति (इन्द्रम्) परम ऐश्वर्य्य देनेवाले ईश्वर का (प्रयत्यध्वरे) बुद्धिप्रद उपासनायज्ञ में (हवामहे) आह्वान करें। हम लोग (प्रयति) उत्तम ज्ञान देनेवाले (अध्वरे) क्रिया से सिद्ध होने योग्य यज्ञ में (प्रातः) प्रतिदिन (इन्द्रम्) उत्तम ऐश्वर्य्यसाधक विद्युत् अग्नि को (हवामहे) क्रियाओं में उपदेश कह सुनके संयुक्त करें, तथा हम लोग (सोमस्य) सब पदार्थों के सार रस को (पीतये) पीने के लिये (प्रातः) प्रतिदिन यज्ञ में (इन्द्रम्) बाहरले वा शरीर के भीतरले प्राण को (हवामहे) विचार में लावें और उसके सिद्ध करने का विचार करें॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परमेश्वर प्रतिदिन उपासना करने योग्य है और उसकी आज्ञा के अनुकूल वर्त्तना चाहिये। बिजुली तथा जो प्राणरूप वायु है, उसकी विद्या से पदार्थों का भोग करना चाहिये॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेन्द्रशब्देन त्रयोऽर्था उपदिश्यन्ते।

अन्वय:

वयं प्रातः प्रतिदिनमिन्द्रं परमैश्वर्य्यप्रदातारमीश्वरं प्रयत्यध्वरे हवामहे। वयं प्रयत्यध्वरे प्रातः प्रतिदिनमिन्द्रं विद्युदाख्यमग्निं हवामहे। वयं प्रयत्यध्वरे सोमस्य पीतये प्रातः प्रतिदिनमिन्द्रं वायुं हवामहे॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रम्) परमेश्वरम् (प्रातः) प्रतिदिनम् (हवामहे) आह्वयेम। बहुलं छन्दसि इति सम्प्रसारणम्। (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्यसाधकं भौतिकमग्निम्। (प्रयति) प्रैति प्रकृष्टं ज्ञानं ददातीति प्रयत् तस्मिन्। इण् गतौ इत्यस्माल्लटः स्थाने शतृप्रत्ययः। (अध्वरे) उपासनाक्रियासाध्ये यज्ञे (इन्द्रम्) बाह्याभ्यन्तरस्थं वायुम् (सोमस्य) सूयते सर्वेभ्यः पदार्थेभ्यो रसस्तस्य (पीतये) पानाय। अत्र ‘पा’धातोर्बाहुलकात्तिः प्रत्ययः॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः परमेश्वरः प्रतिदिनमुपासनीयस्तदाज्ञायां वर्त्तितव्यं च। प्रतियज्ञं विद्युदाख्योऽग्निर्योजनीयः प्राणविद्यया पदार्थभोगश्च कार्य्य इति॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी प्रत्येक दिवशी परमेश्वराची उपासना करावी. त्याच्या आज्ञेप्रमाणे वागावे. विद्युत व प्राणवायूच्या विद्येने पदार्थांचा भोग केला पाहिजे. ॥ ३ ॥