वांछित मन्त्र चुनें

म॒ही अत्र॑ महि॒ना वार॑मृण्वथोऽरे॒णव॒स्तुज॒ आ सद्म॑न्धे॒नव॑:। स्वर॑न्ति॒ ता उ॑प॒रता॑ति॒ सूर्य॒मा नि॒म्रुच॑ उ॒षस॑स्तक्व॒वीरि॑व ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mahī atra mahinā vāram ṛṇvatho reṇavas tuja ā sadman dhenavaḥ | svaranti tā uparatāti sūryam ā nimruca uṣasas takvavīr iva ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒ही। अत्र॑। म॒हि॒ना। वार॑म्। ऋ॒ण्व॒थः॒। अ॒रे॒णवः॑। तुजः॑। आ। सद्म॑न्। धे॒नवः॑। स्वर॑न्ति। ताः। उ॒प॒रऽता॑ति। सूर्य॑म्। आ। नि॒ऽम्रुचः॑। उ॒षसः॑। त॒क्व॒वीःऽइ॑व ॥ १.१५१.५

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:151» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:20» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे पढ़ाने और उपदेश करनेवाले सज्जनो ! तुम दोनों (तक्ववीरिव) जो सेनाजनों को व्याप्त होता उसके समान (अत्र) इस (मही) पृथिवी में (महिना) बड़प्पन से (उपरताति) मेघों के अवकाशवाले अर्थात् मेघ जिसमें आते-जाते उस अन्तरिक्ष में (सूर्यम्) सूर्यमण्डल को (आ, निम्रुचः) मर्यादा माने निरन्तर गमन करती हुई (उषसः) प्रभात वेलाओं के समान (अरेणवः) जो दुष्टों को नहीं प्राप्त (तुजः) सज्जनों ने ग्रहण की हुई (धेनवः) जो दुग्ध पिलाती हैं वे गौयें (सद्मन्) अपने गोड़ों में (वारम्) स्वीकार करने योग्य (आ, स्वरन्ति) सब ओर से शब्द करती हैं (ताः) उनको (ऋण्वथः) प्राप्त होओ ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे दूध देनेवाली गौयें सब प्राणियों को प्रसन्न करती हैं, वैसे पढ़ाने और उपदेश करनेवाले जन विद्या और उत्तम शिक्षा को अच्छे प्रकार देकर सब मनुष्यों को सुखी करें ॥ ५ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे अध्यापकोपदेशकौ युवां तक्ववीरिवात्र मही महिना उपरताति। सूर्यमा निम्रुच उषस इव या अरेणवस्तुजो धेनवः सद्मन्वारमास्वरन्ति ता ऋण्वथः ॥ ५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मही) महत्यां मह्याम् (अत्र) (महिना) महिम्ना (वारम्) वर्त्तुमर्हम् (ऋण्वथः) प्राप्नुथः (अरेणवः) दुष्टानप्राप्ताः (तुजः) आदत्ताः (आ) (सद्मन्) सद्मनि गृहे (धेनवः) या धयन्ति पाययन्ति ताः (स्वरन्ति) (ताः) (उपरताति) उपराणां मेघानामवकाशवत्यन्तरिक्षे (सूर्यम्) (आ) (निम्रुचः) नितरां गच्छन्तीः (उषसः) प्रभातान् (तक्ववीरिव) यस्तकान् सेनाजनान् व्याप्नोति तद्वत् ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा दुग्धदात्र्यो गावः सर्वान् प्रीणयन्ति तथाऽध्यापकोदेशका विद्यासुशिक्षाः प्रदाय सर्वान् सुखयेयुः ॥ ५ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशा दूध देणाऱ्या गाई सर्व प्राण्यांना प्रसन्न करतात तसे अध्यापन करणाऱ्या व उपदेश देणाऱ्या लोकांनी विद्या व सुशिक्षण या द्वारे सर्व माणसांना सुखी करावे. ॥ ५ ॥