गार्ह॑पत्येन सन्त्य ऋ॒तुना॑ यज्ञ॒नीर॑सि। दे॒वान्दे॑वय॒ते य॑ज॥
gārhapatyena santya ṛtunā yajñanīr asi | devān devayate yaja ||
गार्ह॑पत्येन। स॒न्त्य॒। ऋ॒तुना॑। य॒ज्ञ॒ऽनीः। अ॒सि॒। दे॒वान्। दे॒व॒य॒ते। य॒ज॒॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर भी भौतिक अग्नि के गुणों का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनरपि भौतिकाग्निगुणा उपदिश्यन्ते।
यो सन्त्योऽग्निर्गार्हपत्येनर्त्तुना सह यज्ञनीरसि भवति, स देवयते शिल्पिने देवान् यज यजति सङ्गमयति॥१२॥