वांछित मन्त्र चुनें

ई॒ळि॒तो अ॑ग्न॒ आ व॒हेन्द्रं॑ चि॒त्रमि॒ह प्रि॒यम्। इ॒यं हि त्वा॑ म॒तिर्ममाच्छा॑ सुजिह्व व॒च्यते॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

īḻito agna ā vahendraṁ citram iha priyam | iyaṁ hi tvā matir mamācchā sujihva vacyate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ई॒ळि॒तः। अ॒ग्ने॒। आ। व॒ह॒। इन्द्र॑म्। चि॒त्रम्। इ॒ह। प्रि॒यम्। इ॒यम्। हि। त्वा॒। म॒तिः। मम॑। अच्छ॑। सु॒ऽजि॒ह्व॒। व॒च्यते॑ ॥ १.१४२.४

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:142» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:10» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुजिह्व) मधुरभाषिणी जिह्वावाले (अग्ने) सूर्य के समान प्रकाशस्वरूप विद्वान् ! (ईडितः) प्रशंसा को प्राप्त हुए आप (इह) इस जन्म में (प्रियम्) प्रीति करनेवाले (चित्रम्) चित्र विचित्र नानाप्रकार के (इन्द्रम्) परमैश्वर्य को (आ, वह) प्राप्त करो जो (मम) मेरी (इयम्) यह (मतिः) प्रज्ञा बुद्धि तुम से (अच्छ) (वच्यते) कही जाती है (हि) वही (त्वा) आपको प्राप्त हो ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - सबको पुरुषार्थ से विद्वानों की बुद्धि पाकर महान् ऐश्वर्य का अच्छा संग्रह करना चाहिये ॥ ४ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे सुजिह्वाऽग्ने ईळितस्त्वमिव प्रियं चित्रमिन्द्रमावह या ममेयं मतिस्त्वयाच्छ वच्यते सा हि त्वा प्राप्नोतु ॥ ४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ईळितः) प्रशंसितः (अग्ने) सूर्यइव प्रकाशात्मन् (आ) (वह) (इन्द्रम्) परमैश्वर्यम् (चित्रम्) नानाविधम् (इह) अस्मिन् जन्मनि (प्रियम्) प्रीतिकरम् (इयम्) (हि) किल (त्वा) (मतिः) प्रज्ञा (मम) (अच्छ) (सुजिह्व) शोभना जिह्वा मधुरभाषिणी यस्य तत्सम्बुद्धौ (वच्यते) उच्यते ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - सर्वैः पुरुषार्थेन विद्वत्प्रज्ञां प्राप्य महदैश्वर्यं संचेतव्यम् ॥ ४ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्वांनी पुरुषार्थाने विद्वानांची बुद्धी प्राप्त करून महान ऐश्वर्याचा संग्रह केला पाहिजे. ॥ ४ ॥