वांछित मन्त्र चुनें

मु॒मु॒क्ष्वो॒३॒॑ मन॑वे मानवस्य॒ते र॑घु॒द्रुव॑: कृ॒ष्णसी॑तास ऊ॒ जुव॑:। अ॒स॒म॒ना अ॑जि॒रासो॑ रघु॒ष्यदो॒ वात॑जूता॒ उप॑ युज्यन्त आ॒शव॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mumukṣvo manave mānavasyate raghudruvaḥ kṛṣṇasītāsa ū juvaḥ | asamanā ajirāso raghuṣyado vātajūtā upa yujyanta āśavaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मु॒मु॒क्ष्वः॑। मन॑वे। मा॒न॒व॒स्य॒ते। र॒घु॒ऽद्रुवः॑। कृ॒ष्णऽसी॑तासः। ऊँ॒ इति॑। जुवः॑। अ॒स॒म॒नाः। अ॒जि॒रासः॑। र॒घु॒ऽस्यदः॑। वात॑ऽजूताः। उप॑। यु॒ज्य॒न्ते॒। आ॒शवः॑ ॥ १.१४०.४

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:140» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:2» वर्ग:5» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:21» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (मुमुक्ष्वः) संसार से छूटने की इच्छा करनेवाले हैं वे जैसे (रघुद्रुवः) स्वादिष्ठ अन्नों को प्राप्त होनेवाले (जुवः) वेगवान् (असमनाः) एकसा जिनका मन न हो (अजिरासः) जिनको शील प्राप्त है (रघुस्यदः) जो सन्मार्गों में चलनेवाले (वातजूताः) और पवन के समान वेगयुक्त (आशवः) शुभ गुणों में व्याप्त (कृष्णसीतासः) जिनके कि खेती का काम निकालनेवाली हर की यष्टि विद्यमान वे खेतीहर खेती के कामों का (उ) तर्क-वितर्क के साथ (उप, युज्यन्ते) उपयोग करते हैं वैसे (मानवस्यते) अपने को मनुष्यों की इच्छा करनेवाले (मनवे) मननशील विद्वान् योगी पुरुष के लिये उपयोग करें ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे खेती करनेवाले जन खेतों को अच्छे प्रकार जोत बोने के योग्य भली भाँति करके और उसमें बीज बोय फलवान् होते हैं, वैसे मुमुक्षु पुरुष दम नियम से इन्द्रियों को खैंच और शम अर्थात् शान्तिभाव से मन को शान्त कर अपने आत्मा को पवित्र कर ब्रह्मवेत्ता जनों की सेवा करें ॥ ४ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

ये मुमुक्ष्वस्ते यथा रघुद्रुवो जुवोऽसमना अजिरासो रघुस्यदो वातजूता आशवः कृष्णसीतासः कृषीवलाः कृषिकर्मण्युपयुज्यन्ते तथा मानवस्यते मनवे विदुषे योगिन उपयुज्यन्ताम् ॥ ४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मुमुक्ष्वः) मोक्तुमिच्छन्तः। अत्र जसादिषु वा वचनमिति गुणाभावः। (मनवे) (मानवस्यते) मानवान् आत्मन इच्छते (रघुद्रुवः) ये रघून्यास्वादनीयान्यन्नानि द्रवन्ति (कृष्णसीतासः) कृष्णा कृषिसाधिनी सीता येषां ते (उ) (जुवः) जववन्तः (असमनाः) असमानमनस्काः (अजिरासः) प्राप्तशीलाः (रघुस्यदः) ये रघुषु स्यन्दन्ते (वातजूताः) वात इव जूतं शीघ्रगमनं येषान्ते (उप) (युज्यन्ते) अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (आशवः) शुभगुणव्यापिनः ॥ ४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा कृषीवलाः क्षेत्राणि सम्यक् कर्षित्वा सुसंपाद्य बीजानि उप्त्वा फलवन्तो जायन्ते तथा मुमुक्षवो दमेनेन्द्रियाण्याकृष्य शमेन मन उपशाम्य स्वात्मानं पवित्रीकृत्य ब्रह्मविदो जनान् सेवेरन् ॥ ४ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे कृषक शेत नांगरून बीज पेरतात व धान्य काढतात तसे मुमुक्षु पुरुषाने दम इत्यादी नियमांनी इंद्रिये नियंत्रित करून शम अर्थात् शांत भावाने मनाला शांत करून आपल्या आत्म्याला पवित्र करून ब्रह्मवेत्त्या जनांची सेवा करावी. ॥ ४ ॥