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अ॒भि॒व्लग्या॑ चिदद्रिवः शी॒र्षा या॑तु॒मती॑नाम्। छि॒न्धि व॑टू॒रिणा॑ प॒दा म॒हाव॑टूरिणा प॒दा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhivlagyā cid adrivaḥ śīrṣā yātumatīnām | chindhi vaṭūriṇā padā mahāvaṭūriṇā padā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि॒ऽव्लग्य॑। चि॒त्। अ॒द्रि॒ऽवः॒। शी॒र्षा। या॒तु॒ऽमती॑नाम्। छि॒न्धि। व॒टू॒रिणा॑। प॒दा। म॒हाऽव॑टूरिणा। प॒दा ॥ १.१३३.२

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:133» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:1» वर्ग:22» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:19» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर शत्रुजन कैसे मारने चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अद्रिवः) मेघ के समान वर्त्तमान शूरवीर तूँ प्रशंसित बल को (अभिव्लग्य) सब ओर से पाकर (यातुमतीनाम्) जिनमें बहुत हिंसक मार-धार करनेहारे विद्यमान हैं उन सेनाओं के (महावटूरिणा) बड़े-बड़े रङ्ग से युक्त (पदा) चौथे भाग से जैसे (चित्) वैसे (वटूरिणा) लपेटे हुए (पदा) शस्त्रों के चौथे भाग से वा अपने पैर से दबा के (शीर्षा) शत्रुओं के शिरों को (छिन्धि) छिन्न-भिन्न कर ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो अपने बल की उन्नति कर शत्रुओं के बलों को छिन्न-भिन्न कर उनको पैर से दबाता है, वह राज्य करने को योग्य होता है ॥ २ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः शत्रवः कथं हन्तव्या इत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे अद्रिवः शूर त्वं प्रशस्तं बलमभिव्लग्य यातुमतीनां महावटूरिणा पदा चिद्वटूरिणा पदा शीर्षा छिन्धि ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अभिव्लग्य) अभितः सर्वतः प्राप्य। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः। (चित्) इव (अद्रिवः) अद्रिवन्मेघ इव वर्त्तमान (शीर्षा) शीर्षाणि (यातुमतीनाम्) बहवो यातवो हिंसका विद्यन्ते यासु सेनासु तासाम् (छिन्धि) (वटूरिणा) वेष्टितेन। अत्र वट वेष्टन इति धातोर्बाहुलकादौणादिक ऊरिः प्रत्ययः। (महावटूरिणा) महावर्णयुक्तेन (पदा) पादेन ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यः स्वबलमुन्नीय शत्रुबलानि छित्वाऽरीन् पादाक्रान्तान् करोति स राज्यं कर्त्तुमर्हति ॥ २ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो आपले बल वाढवितो व शत्रूंच्या बलाचा नाश करून त्यांना पादाक्रांत करतो तो राज्य करण्यायोग्य असतो. ॥ २ ॥