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क॒न्ये॑व त॒न्वा॒३॒॑ शाश॑दानाँ॒ एषि॑ देवि दे॒वमिय॑क्षमाणम्। सं॒स्मय॑माना युव॒तिः पु॒रस्ता॑दा॒विर्वक्षां॑सि कृणुषे विभा॒ती ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kanyeva tanvā śāśadānām̐ eṣi devi devam iyakṣamāṇam | saṁsmayamānā yuvatiḥ purastād āvir vakṣāṁsi kṛṇuṣe vibhātī ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क॒न्या॑ऽइव। त॒न्वा॑। शाश॑दाना। एषि॑। दे॒वि॒। दे॒वम्। इय॑क्षमाणम्। स॒म्ऽस्मय॑माना। यु॒व॒तिः। पु॒रस्ता॑त्। आ॒विः। वक्षां॑सि। कृ॒णु॒षे॒। वि॒ऽभा॒ती ॥ १.१२३.१०

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:123» मन्त्र:10 | अष्टक:2» अध्याय:1» वर्ग:5» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:18» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देवि) कामना करनेहारी कुमारी ! जो तूँ (तन्वा) शरीर से (कन्येव) कन्या के समान वर्त्तमान (शाशदाना) व्यवहारों में अति तेजी दिखाती हुई (इयक्षमाणम्) अत्यन्त सङ्ग करते हुए (देवम्) विद्वान् पति को (एषि) प्राप्त होती (पुरस्तात्) और सन्मुख (विभाती) अनेक प्रकार सद्गुणों से प्रकाशमान (युवतिः) ज्वानी को प्राप्त हुई (संस्मयमाना) मन्द-मन्द हँसती हुई (वक्षांसि) छाती आदि अङ्गों को (आविः, कृणुषे) प्रसिद्ध करती है, सो तूँ प्रभात वेला की उपमा को प्राप्त होती है ॥ १० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे विदुषी ब्रह्मचारिणी स्त्री पूरी विद्या शिक्षा और अपने समान मनमाने पति को पा कर सुखी होती है, वैसे ही और स्त्रियों को भी आचरण करना चाहिये ॥ १० ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे देवि या त्वं तन्वा कन्येव शाशदानेयक्षमाणं देवं पतिमेषि पुरस्ताद् विभाती युवतिः संस्मयमाना वक्षांस्याविष्कृणुषे सोषरुपमा जायसे ॥ १० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कन्येव) कन्यावद्वर्त्तमाना (तन्वा) शरीरेण (शाशदाना) व्यवहारेष्वतितीक्ष्णतामाचरन्ती (एषि) प्राप्नोषि (देवि) कामयमाने (देवम्) विद्वांसम् (इयक्षमाणम्) अतिशयेन सङ्गच्छमानम् (संस्मयमाना) सम्यङ् मन्दहासयुक्ता (युवतिः) चतुर्विंशतिवार्षिकी (पुरस्तात्) प्रथमतः (आविः) प्रसिद्धौ (वक्षांसि) उरांसि (कृणुषे) (विभाती) विविधतया सद्गुणैः प्रकाशमाना ॥ १० ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा विदुषी ब्रह्मचारिणी पूर्णां विद्यां शिक्षां स्वसदृशं हृद्यं पतिं च प्राप्य सुखिनी भवति तथान्याभिरप्याचरणीयम् ॥ १० ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी विदुषी ब्रह्मचारिणी स्त्री पूर्ण विद्या व शिक्षण घेऊन आपल्याला पसंत असलेल्या पतीला प्राप्त करून सुखी होते तसेच इतर स्त्रियांनीही आचरण करावे. ॥ १० ॥