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अ॒यं स॑मह मा तनू॒ह्याते॒ जनाँ॒ अनु॑। सो॒म॒पेयं॑ सु॒खो रथ॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayaṁ samaha mā tanūhyāte janām̐ anu | somapeyaṁ sukho rathaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒यम्। स॒म॒ह॒। मा॒। त॒नु॒। ऊ॒ह्याते॑। जना॑न्। अनु॑। सो॒म॒ऽपेय॑म्। सु॒ऽखः। रथः॑ ॥ १.१२०.११

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:120» मन्त्र:11 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:23» मन्त्र:6 | मण्डल:1» अनुवाक:17» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (समह) सत्कार के साथ वर्त्तमान विद्वान् ! आप जो (अयम्) यह (सुखः) सुख अर्थात् जिसमें अच्छे अच्छे-अवकाश तथा (रथः) रमण विहार करने के लिये जिसमें स्थित होते वह विमान आदि यान है, जिससे पढ़ाने और उपदेश करनेहारे (अनूह्याते) अनुकूल एकदेश से दूसरे देश को पहुँचाए जाते हैं, उससे (मा) मुझे (जनान्) वा मनुष्यों अथवा (सोमपेयम्) ऐश्वर्य्ययुक्त मनुष्यों के पीने योग्य उत्तम रस को (तनु) विस्तारो अर्थात् उन्नति देओ ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - जो अत्यन्त उत्तम अर्थात् जिससे उत्तम और न बन सके, उस यान का बनानेवाला शिल्पी हो, वह सबको सत्कार करने योग्य है ॥ ११ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे समह विद्वँस्त्वं योऽयं सुखो रथोऽस्ति येनाश्विनावनूह्याते तेन मा जनान् सोमपेयं च सुखेन तनु ॥ ११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) (समह) यो महेन सत्कारेण सह वर्त्तते तत्संबुद्धौ (मा) माम् (तनु) विस्तृणुहि (ऊह्याते) देशान्तरं गम्येते (जनान्) (अनु) (सोमपेयम्) सोमैरैश्वर्ययुक्तैः पातुं योग्यं रसम् (सुखः) शोभनानि खान्यवकाशा विद्यन्ते यस्मिन् सः (रथः) रमणाय तिष्ठति यस्मिन् ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - योऽनुत्तमयानकारी शिल्पी भवेत् स सर्वैः सत्कर्त्तव्योऽस्ति ॥ ११ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अत्यंत उत्तम यानाला बनविणारा कारागीर सर्वांनी सत्कार करण्यायोग्य असतो. ॥ ११ ॥