अ॒यं स॑मह मा तनू॒ह्याते॒ जनाँ॒ अनु॑। सो॒म॒पेयं॑ सु॒खो रथ॑: ॥
ayaṁ samaha mā tanūhyāte janām̐ anu | somapeyaṁ sukho rathaḥ ||
अ॒यम्। स॒म॒ह॒। मा॒। त॒नु॒। ऊ॒ह्याते॑। जना॑न्। अनु॑। सो॒म॒ऽपेय॑म्। सु॒ऽखः। रथः॑ ॥ १.१२०.११
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ।
हे समह विद्वँस्त्वं योऽयं सुखो रथोऽस्ति येनाश्विनावनूह्याते तेन मा जनान् सोमपेयं च सुखेन तनु ॥ ११ ॥