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क॒विम॒ग्निमुप॑स्तुहि स॒त्यध॑र्माणमध्व॒रे। दे॒वम॑मीव॒चात॑नम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kavim agnim upa stuhi satyadharmāṇam adhvare | devam amīvacātanam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क॒विम्। अ॒ग्निम्। उप॑। स्तु॒हि॒। स॒त्यऽध॑र्माणम्। अ॒ध्व॒रे। दे॒वम्। अ॒मी॒व॒ऽचात॑नम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:12» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अगले मन्त्र में अग्नि शब्द से ईश्वर और भौतिक अग्नि का उपदेश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य ! तू (अध्वरे) उपासना करने योग्य व्यवहार में (सत्यधर्माणम्) जिसके धर्म नित्य और सनातन हैं, जो (अमीवचातनम्) अज्ञान आदि दोषों का विनाश करने तथा (कविम्) सब की बुद्धियों को अपने सर्वज्ञपन से प्राप्त होकर (देवम्) सब सुखों का देनेवाला (अग्निम्) सर्वज्ञ ईश्वर है, उसको (उपस्तुहि) मनुष्यों के समीप प्रकाशित कर॥१॥७॥हे मनुष्य ! तू (अध्वरे) करने योग्य यज्ञ में (सत्यधर्माणम्) जो कि अविनाशी गुण और (अमीवचातनम्) ज्वरादि रोगों का विनाश करने तथा (कविम्) सब स्थूल पदार्थों को दिखानेवाला और (देवम्) सब सुखों का दाता (अग्निम्) भौतिक अग्नि है, उसको (उपस्तुहि) सब के समीप सदा प्रकाशित कर॥२॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। मनुष्यों को सत्यविद्या से धर्म की प्राप्ति तथा शिल्पविद्या की सिद्धि के लिये ईश्वर और भौतिक अग्नि के गुण अलग-अलग प्रकाशित करने चाहियें। जिससे प्राणियों को रोग आदि के विनाशपूर्वक सब सुखों की प्राप्ति यथावत् हो॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्निशब्देनेश्वरभौतिकार्थावुपदिश्येते।

अन्वय:

हे मनुष्य ! त्वमध्वरे सत्यधर्माणममीवचातनं कविं देवमग्निं परमेश्वरं भौतिकं चोपस्तुहि॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कविम्) सर्वेषां बुद्धीनां सर्वज्ञतया क्रमितारमीश्वरं सर्वेषां दृश्यानां दर्शयितारं भौतिकं वा (अग्निम्) ज्ञातारं दाहकं वा (उप) सामीप्येऽर्थे (स्तुहि) प्रकाशय (सत्यधर्माणम्) सत्या नाशरहिता धर्मा यस्य तम् (अध्वरे) उपासनीये कर्त्तव्ये वा यज्ञे (देवम्) सुखदातारम् (अमीवचातनम्) अमीवानज्ञानादीन् ज्वरादींश्च रोगान् चातयति हिनस्ति तम्॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषालङ्कारः। मनुष्यैः सत्यविद्यया धर्मप्राप्तये सत्यशिल्पविद्यासिद्धये चाग्निरीश्वरो भौतिको वा तत्तद्गुणैः प्रकाशयितव्यो यतः प्राणिनां रोगनिवारणेन सुखान्युपगतानि स्युः॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. माणसांनी सत्यविद्येने धर्माची प्राप्ती व शिल्पविद्येच्या सिद्धीसाठी ईश्वर व भौतिक अग्नीचे वेगवेगळे गुण प्रकट केले पाहिजेत. ज्यामुळे प्राण्यांच्या रोगांचा नाश होऊन सर्व सुखाची प्राप्ती व्हावी. ॥ ७ ॥