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यु॒वं धे॒नुं श॒यवे॑ नाधि॒तायापि॑न्वतमश्विना पू॒र्व्याय॑। अमु॑ञ्चतं॒ वर्ति॑का॒मंह॑सो॒ निः प्रति॒ जङ्घां॑ वि॒श्पला॑या अधत्तम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yuvaṁ dhenuṁ śayave nādhitāyāpinvatam aśvinā pūrvyāya | amuñcataṁ vartikām aṁhaso niḥ prati jaṅghāṁ viśpalāyā adhattam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यु॒वम्। धे॒नुम्। श॒यवे॑। ना॒धि॒ताय॑। अपि॑न्वतम्। अ॒श्वि॒ना॒। पू॒र्व्याय॑। अमु॑ञ्चतम्। वर्ति॑काम्। अंह॑सः। निः। प्रति॑। जङ्घा॑म्। वि॒श्पला॑याः। अ॒ध॒त्त॒म् ॥ १.११८.८

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:118» मन्त्र:8 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:17» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) अच्छी सीख पाये हुए समस्त विद्याओं में रमते हुए स्त्री-पुरुषो ! (युवम्) तुम दोनों (नाधिताय) ऐश्वर्य्ययुक्त (पूर्व्याय) अगले विद्वानों ने किये हुए (शयवे) जो कि सुख से सोता है उस विद्वान् के लिये (धेनुम्) अच्छी सीख दी हुई वाणी को (अपिन्वतम्) सेवन करो, जिसको (अंहसः) अधर्म के आचरण से (निरमुञ्चतम्) निरन्तर छुड़ाओ उससे (विश्पलायाः) प्रजाजनों की पालना के लिये (जङ्घाम्) सब सुखों की उत्पन्न करनेवाली (वर्त्तिकाम्) विनय, नम्रता आदि गुणों के सहित उत्तम नीति को (प्रत्यधत्तम्) प्रतीति से धारण करो ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुष सब ऐश्वर्ययुक्त परस्पर धनीजनों के कुल में हुए प्रजाजनों को सत्यन्याय से सन्तोष दे उनको ब्रह्मचर्य के नियम से विद्या ग्रहण करने के लिये प्रवृत्त करावें, जिससे किसी का लड़का और लड़की विद्या और उत्तम शिक्षा के विना न रह जाय ॥ ८ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे अश्विना सकलविद्याव्यापिनौ स्त्रीपुरुषौ युवं युवां नाधिताय पूर्व्याय शयवे धेनुमपिन्वतं यमंहसो निरमुञ्चतं तस्माद्विश्पलाया पालनाय जङ्घां वर्त्तिकां प्रत्यधत्तम् ॥ ८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (युवम्) (धेनुम्) सुशिक्षितां वाचम् (शयवे) सुखेन शयानाय (नाधिताय) ऐश्वर्ययुक्ताय (अपिन्वतम्) (अश्विना) सुशिक्षितौ स्त्रीपुरुषौ (पूर्व्याय) पूर्वैर्विद्वद्भिः कृताय निष्पादिताय विदुषे (अमुञ्चतम्) मुञ्चेताम् (वर्त्तिकाम्) विनयादिसहितां नीतिम् (अंहसः) अधर्मानुष्ठानात् (निः) निर्गते (प्रति) (जङ्घाम्) सर्वसुखजनिकाम्। अच् तस्य जङ्घ च। उ० ५। ३१। इति जन धातोरच् प्रत्ययो जङ्घादेशश्च। (विश्पलायाः) प्रजायाः (अधत्तम्) दध्यातम् ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषाः सर्वानैश्वर्ययुक्तान् परस्परं धनाढ्यकुलोद्गतान् प्रजास्थान् सत्यन्यायेन सन्तोष्य ब्रह्मचर्येण विद्याग्रहणाय प्रवर्त्तयध्वम्। यतः कस्यापि पुत्रः पुत्री च विद्यासुशिक्षे अन्तरा नावशिष्येत् ॥ ८ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजपुरुषांनी सर्व प्रकारच्या ऐश्वर्याने युक्त असलेल्या धनाढ्य कुलातील प्रजाजनांना सत्य न्यायाने संतुष्ट करून त्यांना ब्रह्मचर्याच्या नियमाने विद्या ग्रहण करण्यास लावावे किंवा प्रवृत्त करावे. ज्यामुळे कुणाचाही मुलगा व मुलगी विद्या व उत्तम शिक्षणाविना राहता कामा नये. ॥ ८ ॥