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म॒ही वा॑मू॒तिर॑श्विना मयो॒भूरु॒त स्रा॒मं धि॑ष्ण्या॒ सं रि॑णीथः। अथा॑ यु॒वामिद॑ह्वय॒त्पुर॑न्धि॒राग॑च्छतं सीं वृषणा॒ववो॑भिः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mahī vām ūtir aśvinā mayobhūr uta srāmaṁ dhiṣṇyā saṁ riṇīthaḥ | athā yuvām id ahvayat puraṁdhir āgacchataṁ sīṁ vṛṣaṇāv avobhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒ही। वा॒म्। ऊ॒तिः। अ॒श्वि॒ना॒। म॒यः॒ऽभूः। उ॒त। स्रा॒मम्। धि॒ष्ण्या॒। सम्। रि॒णी॒थः॒। अथ॑। यु॒वाम्। इत्। अ॒ह्व॒य॒त्। पुर॑म्ऽधिः। आ। अ॒ग॒च्छ॒त॒म्। सी॒म्। वृ॒ष॒णौ॒। अवः॑ऽभिः ॥ १.११७.१९

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:117» मन्त्र:19 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:16» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:17» मन्त्र:19


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृषणौ) सुख वर्षानेवाले (धिष्ण्या) बुद्धिमान् (अश्विना) सभा और सेना में अधिकार पाये हुए जनो ! (वाम्) तुम दोनों की जो (मही) बड़ी (उत) और (मयोभूः) सुख को उत्पन्न करानेवाली (ऊतिः) रक्षा आदि युक्त नीति है उससे (स्रामम्) दुःख देनेवाले अन्याय को (युवाम्) तुम (सं, रिणीथः) भली-भाँति दूर करो (अथ) इसके पीछे जो (पुरन्धिः) अति बुद्धिमान् ज्वान यौवन से पूर्ण स्त्री को (अह्वयत्) बुलावे (इत्) उसी के समान (अवोभिः) रक्षा आदि के साथ (सीम्) ही (आ, अगच्छतम्) आओ ॥ १९ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषों को चाहिये कि न्याय से अन्याय को अलग कर धर्म में प्रवृत्त, शरण आये हुए जनों को अच्छे प्रकार पाल के सब ओर से कृतकृत्य हों ॥ १९ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे वृषणौ धिष्ण्याश्विना वां या मह्युत मयोभूरूतिर्नीतिरस्ति तया स्रामं युवां संरिणीथः। अथ यः पुरन्धिर्युवा युवतिमह्वयत्तमिदेवावोभिः सह सीमागच्छतम् ॥ १९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मही) महती (वाम्) युवयोः (ऊतिः) रक्षणादियुक्ता नीतिः (अश्विना) प्रजापालनाधिकृतौ सभासेनेशौ (मयोभूः) मयः सुखं भावयति या सा (उत) (स्रामम्) दुःखप्रदमन्यायम् (धिष्ण्या) धीमन्तौ (सम्) (रिणीथः) हिंस्तम् (अथ) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (युवाम्) द्वौ (इत्) (अह्वयत्) आह्वयेत् (पुरन्धिः) पुष्कलप्रज्ञः (आ) (अगच्छतम्) (सीम्) निश्चये (वृषणौ) (अवोभिः) रक्षणादिभिः ॥ १९ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषैर्न्यायादन्यायं पृथक्कृत्य धर्मप्रवृत्तान् शरणागतान् संरक्ष्य सर्वतः कृतकृत्यैर्भवितव्यम् ॥ १९ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजपुरुषांनी न्यायाला अन्यायापासून पृथक करून शरण आलेल्या धर्मप्रवृत्त लोकांचे चांगल्या प्रकारे पालन करावे व सर्व प्रकारे कृतकृत्य व्हावे. ॥ १९ ॥