वांछित मन्त्र चुनें

यच्चि॒त्रमप्न॑ उ॒षसो॒ वह॑न्तीजा॒नाय॑ शशमा॒नाय॑ भ॒द्रम्। तन्नो॑ मि॒त्रो वरु॑णो मामहन्ता॒मदि॑ति॒: सिन्धु॑: पृथि॒वी उ॒त द्यौः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yac citram apna uṣaso vahantījānāya śaśamānāya bhadram | tan no mitro varuṇo māmahantām aditiḥ sindhuḥ pṛthivī uta dyauḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। चि॒त्रम्। अप्नः॑। उ॒षसः॑। वह॑न्ति। ई॒जा॒नाय॑। श॒श॒मा॒नाय॑। भ॒द्रम्। तत्। नः॒। मि॒त्रः। वरु॑णः। म॒म॒ह॒न्ता॒म्। अदि॑तिः। सिन्धुः॑। पृ॒थि॒वी। उ॒त। द्यौः ॥ १.११३.२०

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:113» मन्त्र:20 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:4» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:16» मन्त्र:20


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (उषसः) उषा के समान स्त्री (शशमानाय) प्रशंसित गुणयुक्त (ईजानाय) सङ्ग शील पुरुष के लिये और (नः) हमारे लिये (यत्) जो (चित्रम्) अद्भुत (भद्रम्) कल्याणकारी (अप्नः) सन्तान की (वहन्ति) प्राप्ति करातीं वा जिन स्त्रियों से (मित्रः) सखा (वरुणः) उत्तम पिता (अदितिः) श्रेष्ठ माता (सिन्धुः) समुद्र वा नदी (पृथिवी) भूमि (उत) और (द्यौः) विद्युत् वा सूर्यादि प्रकाशमान पदार्थ पालन करने योग्य है, उन स्त्रियों वा (तत्) उस सन्तान को निरन्तर (मामहन्ताम्) उपकार में लगाया करो ॥ २० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। श्रेष्ठ विद्वान् ही सन्तानों को उत्पन्न अच्छे प्रकार रक्षित और उनको अच्छी शिक्षा करके उनके बढ़ाने को समर्थ होते हैं। जो पुरुष स्त्रियों और जो स्त्री पुरुषों का सत्कार करती हैं, उनके कुल में सब सुख निवास करते हैं और दुःख भाग जाते हैं ॥ २० ॥इस सूक्त में रात्रि और प्रभात समय के गुणों का वर्णन और इनके दृष्टान्त से स्त्री-पुरुषों के कर्त्तव्य कर्म का उपदेश किया है। इससे इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त से कहे अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह ११३ एक सौ तेरहवाँ सूक्त और ४ चौथा वर्ग समाप्त हुआ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे मनुष्य या उषस इव वर्त्तमानाः सत्स्त्रियः शशमानायेजानाय पुरुषाय नोऽस्मभ्यं च यच्चित्रं भद्रमप्नो वहन्ति याभिर्मित्रो वरुणोदितिः सिन्धुः पृथिवी उतापि द्यौश्च पालनीयाः सन्ति तास्तच्च भवन्तः सततं मामहन्ताम् ॥ २० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) (चित्रम्) अद्भुतम् (अप्नः) अपत्यम् (उषसः) प्रभातवेला इव स्त्रियः (वहन्ति) प्रापयन्ति (ईजानाय) सङ्गन्तुं शीलाय (शशमानाय) प्रशंसिताय (भद्रम्) कल्याणकरम् (तत्०) इति पूर्ववत् ॥ २० ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। श्रेष्ठा विदुष्यः स्त्रिय एव सन्तानानुत्पाद्य संरक्ष्य सुशिक्षया वर्धयितुं शक्नुवन्ति। ये पुरुषाः स्त्रीः सत्कुर्वन्ति याः पुरुषांश्च तेषां कुले सर्वाणि सुखानि वसन्ति दुःखानि च पलायन्ते ॥ २० ॥अत्र रात्र्युषर्गुणवर्णनं तद्दृष्टान्तेन स्त्रीपुरुषकर्त्तव्यकर्मोपदेशत एतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥ ।इति त्रयोदशोत्तरशततमं सूक्तमष्टमे चतुर्थो वर्गश्च सम्पूर्णः ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. श्रेष्ठ विद्वानच संतानांना उत्पन्न करून चांगल्या प्रकारे रक्षण करून त्यांना चांगले शिक्षण देऊन त्यांना वाढविण्यास समर्थ असतात. जे पुरुष स्त्रियांचा व ज्या स्त्रिया पुरुषांचा सत्कार करतात त्यांच्या कुळात सर्व सुखांचा निवास असतो व दुःख पळून जाते. ॥ २० ॥