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आ॒वह॑न्ती॒ पोष्या॒ वार्या॑णि चि॒त्रं के॒तुं कृ॑णुते॒ चेकि॑ताना। ई॒युषी॑णामुप॒मा शश्व॑तीनां विभाती॒नां प्र॑थ॒मोषा व्य॑श्वैत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

āvahantī poṣyā vāryāṇi citraṁ ketuṁ kṛṇute cekitānā | īyuṣīṇām upamā śaśvatīnāṁ vibhātīnām prathamoṣā vy aśvait ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ॒ऽवह॑न्ती। पोष्या॑। वार्या॑णि। चि॒त्रम्। के॒तुम्। कृ॒णु॒ते॒। चेकि॑ताना। ई॒युषी॑णाम्। उ॒प॒ऽमा। शश्व॑तीनाम्। वि॒ऽभा॒ती॒नाम्। प्र॒थ॒मा। उ॒षाः। वि। अ॒श्वै॒त् ॥ १.११३.१५

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:113» मन्त्र:15 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:16» मन्त्र:15


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्री लोगो ! तुम जैसे (उषाः) प्रातर्वेला (पोष्या) पुष्टि कराने और (वार्याणि) स्वीकार करने योग्य धनादि पदार्थों को (आवहन्ती) प्राप्त कराती और (चेकिताना) अत्यन्त चिताती हुई (चित्रम्) अद्भुत (केतुम्) किरण को (कृणुते) करती अर्थात् प्रकाशित करती है (विभातीनाम्) विशेष कर प्रकाशित करती हुई सूर्य्यकान्तियों और (ईयुषीणाम्) चलती हुई (शश्वतीनाम्) अनादि रूप घड़ियों की (प्रथमा) पहिली (उपमा) दृष्टान्तरूप (व्यश्वैत्) व्याप्त होती है, वैसे ही शुभ गुण कर्मों से (चरत) विचरा करो ॥ १५ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग यह निश्चित जानो कि जैसे प्रातःकाल से आरम्भ करके कर्म उत्पन्न होते हैं, वैसे स्त्रियों के आरम्भ से घर के कर्म हुआ करते हैं ॥ १५ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे स्त्रियो यूयं यथोषाः पौष्या वार्य्याण्यावहन्ती चेकिताना चित्रं केतुं कृणुते विभातीनामीयुषीणां शश्वतीनां प्रथमोपमाव्यश्वैत्तथा शुभगुणकर्मसु विचरत ॥ १५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आवहन्ती) प्रापयन्ती (पोष्या) पोषयितुमर्हाणि (वार्य्याणि) वरीतुमर्हाणि धनादीनि (चित्रम्) अद्भुतम् (केतुम्) किरणम् (कृणुते) करोति (चेकिताना) भृशं चेतयन्ती (ईयुषीणाम्) गच्छन्तीनाम् (उपमा) दृष्टान्तः (शश्वतीनाम्) अनादिभूतानां घटिकानाम् (विभातीनाम्) प्रकाशयन्तीनां सूर्य्यकान्तीनाम् (प्रथमा) आदिमा (उषाः) (वि) (अश्वैत्) व्याप्नोति ॥ १५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यूयं निश्चितं जानीत यथोषसमारभ्य कर्माण्युत्पद्यन्ते तथा स्त्रिय आरभ्य गृहकल्पानि जायन्ते ॥ १५ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! तुम्ही हे निश्चित जाणा की जसे प्रातःकाळापासून कर्माची सुरुवात होते तशा स्त्रिया प्रातःकाळापासून घरातील कामाचा प्रारंभ करतात. ॥ १५ ॥