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यदि॑न्द्राग्नी॒ मद॑थ॒: स्वे दु॑रो॒णे यद्ब्र॒ह्मणि॒ राज॑नि वा यजत्रा। अत॒: परि॑ वृषणा॒वा हि या॒तमथा॒ सोम॑स्य पिबतं सु॒तस्य॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad indrāgnī madathaḥ sve duroṇe yad brahmaṇi rājani vā yajatrā | ataḥ pari vṛṣaṇāv ā hi yātam athā somasya pibataṁ sutasya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। इ॒न्द्रा॒ग्नी॒ इति॑। मद॑थः। स्वे। दु॒रो॒णे। यत्। ब्र॒ह्मणि॑। राज॑नि। वा॒। य॒ज॒त्रा॒। अतः॑। परि॑। वृ॒ष॒णौ॒। आ। हि। या॒तम्। अथ॑। सोम॑स्य। पि॒ब॒त॒म्। सु॒तस्य॑ ॥ १.१०८.७

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:108» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:27» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:16» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृषणौ) सुखरूपी वर्षा के करनेहारे (यजत्रा) अच्छी प्रकार मिलकर सत्कार करने के योग्य (इन्द्राग्नी) स्वामी सेवको ! तुम दोनों (यत्) जिस कारण (स्वे) अपने (दुरोणे) घर में वा (यत्) जिस कारण (ब्रह्मणि) ब्राह्मणों की सभा और (राजनि) राजजनों की सभा (वा) वा और सभा में (मदथः) आनन्दित होते हो (अतः) इस कारण से (परि, आ, यातम्) सब प्रकार से आओ (अथ, हि) इसके अनन्तर एक निश्चय के साथ (सुतस्य) उत्पन्न हुए (सोमस्य) संसारी पदार्थों के रस को (पिबतम्) पिओ ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - जहाँ-जहाँ स्वामि और शिल्पि वा पढ़ाने और पढ़नेवाले वा राजा और प्रजाजन जायें वा आवें वहाँ-वहाँ सभ्यता से स्थित हों, विद्या और शान्तियुक्त वचन को कह और अच्छे शील का ग्रहण कर सत्य कहें और सुनें ॥ ७ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे वृषणौ यजत्रा इन्द्राग्नी युवां यद्यतः स्वे दुरोणे यद् यस्मिन् ब्रह्मणि राजनि वा मदथोऽतः कारणात्पर्य्यायातमथ हि खलु सुतस्य सोमस्य पिबतम् ॥ ७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यतः (इन्द्राग्नी) (मदथः) हर्षथः (स्वे) स्वकीये (दुरोणे) गृहे (यत्) यतः (ब्रह्मणि) ब्राह्मणसभायाम् (राजनि) राजसभायाम् (वा) अन्यत्र (यजत्रा) सङ्गम्य सत्कर्त्तव्यौ (अतः) कारणात् (परि) (वृषणौ) सुखानां वर्षयितारौ। अन्यत्पूर्ववत् ॥ ७ ॥
भावार्थभाषाः - यत्र यत्र स्वामिशिल्पिनावध्यापकाध्येतारौ राजप्रजापुरुषौ वा गच्छेतां खल्वागच्छेतां वा तत्र तत्र सभ्यतया स्थित्वा विद्याशान्तियुक्तं वचः संभाष्य सुशीलतया सत्यं वदतां सत्यं शृणुतां च ॥ ७ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेथे जेथे मालक व कारागीर, अध्यापक व अध्येता किंवा राजा व प्रजा जाईल तेथे तेथे सभ्यतेने राहावे. विद्या व शांतियुक्त वचन बोलून सुशिलतेने वागावे. सत्य बोलावे, सत्य ऐकावे. ॥ ७ ॥