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मा नो॑ वधीरिन्द्र॒ मा परा॑ दा॒ मा न॑: प्रि॒या भोज॑नानि॒ प्र मो॑षीः। आ॒ण्डा मा नो॑ मघवञ्छक्र॒ निर्भे॒न्मा न॒: पात्रा॑ भेत्स॒हजा॑नुषाणि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā no vadhīr indra mā parā dā mā naḥ priyā bhojanāni pra moṣīḥ | āṇḍā mā no maghavañ chakra nir bhen mā naḥ pātrā bhet sahajānuṣāṇi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा। नः॒। व॒धीः॒। इ॒न्द्र॒। मा। परा॑। दाः॒। मा। नः॒। प्रि॒या। भोज॑नानि। प्र। मो॒षीः॒। आ॒ण्डा। मा। नः॒। म॒घ॒ऽव॒न्। श॒क्र॒। निः। भे॒त्। मा। नः॒। पात्रा॑। भे॒त्। स॒हऽजा॑नुषाणि ॥ १.१०४.८

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:104» मन्त्र:8 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:15» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर इनको कैसी प्रतिज्ञा करनी चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) प्रशंसित धनयुक्त (शक्र) सब व्यवहार के करने को समर्थ (इन्द्र) शत्रुओं को विनाश करनेवाले सभा के स्वामी ! आप (नः) हम प्रजास्थ मनुष्यों को (मा, वधीः) मत मारिये (मा, परा, दाः) अन्याय से दण्ड मत दीजिये, स्वाभाविक काम और (नः) हम लोगों के (सहजानुषाणि) जो जन्म से सिद्ध उनके वर्त्तमान (प्रिया) पियारे (भोजनानि) भोजन पदार्थों को (मा, प्र मोषीः) मत चोरिये, (नः) हमारे (आण्डा) अण्डा के समान जो गर्भ में स्थित हैं उन प्राणियों को (मा, निर्भेत्) विदीर्ण मत कीजिये, (नः) हम लोगों के (पात्रा) सोने चाँदी के पात्रों को (मा, भेत्) मत बिगाड़िये ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - हे सभापति ! तू जैसे अन्याय से किसी को न मारके किसी भी धार्मिक सज्जन से विमुख न होकर चोरी-चपारी आदि दोषरहित परमेश्वर दया का प्रकाश करता है, वैसे ही अपने राज्य के काम करने में प्रवृत्त हो, ऐसे वर्त्ताव के विना राजा से प्रजा सन्तोष नहीं पाती ॥ ८ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरेताभ्यां कथं प्रतिज्ञातव्यमित्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे मघवञ्छक्रेन्द्र सभाधिपते त्वं नो मा वधीः। मा परादाः। नः सहजानुषाणि प्रिया भोजनानि मा प्रमोषीः। नोऽस्माकमाण्डा मा निर्भेत्। नोऽस्माकं पात्रा मा भेत् ॥ ८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मा) निषेधे (नः) अस्मान् प्रजास्थान्मनुष्यादीन् (वधीः) हिंस्याः (इन्द्र) शत्रुविनाशक (मा) (परा) (दाः) दद्याः (मा) (नः) अस्माकम् (प्रिया) प्रियाणि (भोजनानि) भोजनवस्तूनि (प्र) (मोषीः) स्तेनयेः (आण्डा) अण्डवद्गर्भे स्थितान् (मा) (नः) अस्माकम् (मघवन्) पूजितधनयुक्त (शक्र) शक्नोति सर्वं व्यवहारं कर्त्तुं तत्सम्बुद्धौ (निः) नितराम् (भेत्) भिन्द्याः। बहुलं छन्दसीतीडभावो झलो झलीति सलोपो हल्ङ्याब्भ्य इति सिब्लोपश्च। (मा) (नः) अस्माकम् (पात्रा) पात्राणि सुवर्णरजतादीनि (भेत्) भिन्द्याः (सहजानुषाणि) जनुर्भिर्जन्मभिर्निर्वृत्तानि जानुषाणि कर्माणि तैः सह वर्त्तमानानि ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - हे सभापते त्वं यथान्यायेन कंचिदप्यहिंसित्वा कस्माच्चिदपि धार्मिकादपराङ्मुखो भूत्वा स्तेयादिदोषरहितो परमेश्वरो दयां प्रकाशयति तथैव प्रवर्त्तस्व नह्येवं वर्त्तमानेन विना प्रजा संतुष्टा जायते ॥ ८ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे सभापती ! तू अन्यायाने कुणाला न मारता कोणत्याही धार्मिक सज्जनाला विमुख न होता जसा दोषरहित परमेश्वर दया करतो तसेच आपल्या राज्याच्या कामात तू प्रवृत्त हो. अशा वर्तनाखेरीज राजा प्रजेला संतुष्ट करू शकत नाही ॥ ८ ॥