वांछित मन्त्र चुनें

भूरि॑कर्मणे वृष॒भाय॒ वृष्णे॑ स॒त्यशु॑ष्माय सुनवाम॒ सोम॑म्। य आ॒दृत्या॑ परिप॒न्थीव॒ शूरोऽय॑ज्वनो वि॒भज॒न्नेति॒ वेद॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhūrikarmaṇe vṛṣabhāya vṛṣṇe satyaśuṣmāya sunavāma somam | ya ādṛtyā paripanthīva śūro yajvano vibhajann eti vedaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भूरि॑ऽकर्मणे। वृ॒ष॒भाय॑। वृष्णे॑। स॒त्यऽशु॑ष्माय। सु॒न॒वा॒म॒। सोम॑म्। यः। आ॒ऽदृत्य॑। प॒रि॒ऽप॒न्थीऽइ॑व। शूरः॑। अय॑ज्वनः। वि॒ऽभज॑न्। एति॑। वेदः॑ ॥ १.१०३.६

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:103» मन्त्र:6 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:17» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:15» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हम लोग (यः) जो (शूरः) निडर शूरवीर पुरुष (आदृत्य) आदर सत्कार कर (परिपन्थीव) जैसे सब प्रकार से मार्ग में चले हुए डाकू दूसरे का धन आदि सर्वस्व हर लेते हैं वैसे चोरों के प्राण और उनके पदार्थों को छीन-छान हर लेवे वह (विभजन्) विभाग अर्थात् श्रेष्ठ और दुष्ट पुरुषों को अलग-अलग करता हुआ उनमें से (अयज्वनः) जो यज्ञ नहीं करते उनके (वेदः) धन को (एति) छीन लेता, उस (भूरिकर्मणे) भारी काम के करनेवाले (वृषभाय) श्रेष्ठ (वृष्णे) सुख पहुँचानेवाले (सत्यशुष्माय) नित्य बली सेनापति के लिये जैसे, (सोमम्) ऐश्वर्य्य समूह को (सुनवाम) उत्पन्न करें वैसे तुम भी करो ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जो ऐसा ढीठ है कि जैसे डाकू आदि होते हैं और साहस करता हुआ चोरों के धन आदि पदार्थों को हर सज्जनों का आदरकर पुरुषार्थी बलवान् उत्तम से उत्तम हो, उसीको सेनापति करें ॥ ६ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

वयं यः शूर आदृत्य परिपन्थीव विभजन्नयज्वनो वेद एति तस्मै भूरिकर्मणे वृषभाय वृष्णे सत्यशुष्मायेन्द्राय सेनापतये यथा सोमं सुनवाम तथा यूयमपि सुनुत ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भूरिकर्मणे) बहुकर्मकारिणे (वृषभाय) श्रेष्ठाय (वृष्णे) सुखप्रापकाय (सत्यशुष्माय) नित्यबलाय (सुनवाम) निष्पादयेम (सोमम्) ऐश्वर्य्यसमूहम् (यः) (आदृत्य) आदरं कृत्वा (परिपन्थीव) यथा दस्युस्तथा चौराणां प्राणपदार्थहर्त्ता (शूरः) निर्भयः (अयज्वनः) यज्ञविरोधिनः (विभजन्) विभागं कुर्वन् (एति) प्राप्नोति (वेदः) धनम् ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यो दस्युवत् प्रगल्भः साहसी सन् चौराणां सर्वस्वं हृत्वा सत्कर्मणामादरं विधाय पुरुषार्थी बलवानुत्तमो वर्त्तते स एव सेनापतिः कार्य्यः ॥ ६ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे चोर इत्यादी धीट बनून दुसऱ्याच्या वस्तू हरण करतात त्या चोरांचे धन इत्यादी पदार्थ जो साहसी बनून हरण करतो व सज्जनांचा सत्कार करतो आणि पुरुषार्थी बलवान व उत्तमात उत्तम असतो त्यालाच सेनापती करावे ॥ ६ ॥