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तमित्स॑खि॒त्व ई॑महे॒ तं रा॒ये तं सु॒वीर्ये॑। स श॒क्र उ॒त नः॑ शक॒दिन्द्रो॒ वसु॒ दय॑मानः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam it sakhitva īmahe taṁ rāye taṁ suvīrye | sa śakra uta naḥ śakad indro vasu dayamānaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। इत्। स॒खि॒ऽत्वे। ई॒म॒हे॒। तम्। रा॒ये। तम्। सु॒ऽवीर्ये॑। सः। श॒क्रः। उ॒त। नः॒। श॒क॒त्। इन्द्रः॑। वसु॑। दय॑मानः॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:10» मन्त्र:6 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:19» मन्त्र:6 | मण्डल:1» अनुवाक:3» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

किस-किस पदार्थ की प्राप्ति के लिये ईश्वर की प्रार्थना करनी चाहिये, सो अगले मन्त्र में प्रकाश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - जो (नः) हमारे लिये (दयमानः) सुखपूर्वक रमण करने योग्य विद्या, आरोग्यता और सुवर्णादि धन का देनेवाला, विद्यादि गुणों का प्रकाशक और निरन्तर रक्षक तथा दुःख दोष वा शत्रुओं के विनाश और अपने धार्मिक सज्जन भक्तों के ग्रहण करने (शक्रः) अनन्त सामर्थ्ययुक्त (इन्द्रः) दुःखों का विनाश करनेवाला जगदीश्वर है, वही (वसु) विद्या और चक्रवर्त्ति राज्यादि परमधन देने को (शकत्) समर्थ है, (तमित्) उसी को हम लोग (उत) वेदादि शास्त्र सब विद्वान् प्रत्यक्षादि प्रमाण और अपने भी निश्चय से (सखित्वे) मित्रों और अच्छे कर्मों के होने के निमित्त (तम्) उसको (राये) पूर्वोक्त विद्यादि धन के अर्थ और (तम्) उसी को (सुवीर्य्ये) श्रेष्ठ गुणों से युक्त उत्तम पराक्रम की प्राप्ति के लिये (ईमहे) याचते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्यों को उचित है कि सब सुख और शुभगुणों की प्राप्ति के लिये परमेश्वर ही की प्रार्थना करें, क्योंकि वह अद्वितीय सर्वमित्र परमैश्वर्य्यवाला अनन्त शक्तिमान् ही उक्त पदार्थों के देने में सामर्थ्यवाला है ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

क्व क्व स प्रार्थनीय इत्युपदिश्यते।

अन्वय:

यो नो दयमानः शक्र इन्द्रः परमात्मा वसु दातुं शक्नोति तमिदेव वयं सखित्वे तं राये तं सुवीर्य्यं ईमहे ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) परमेश्वरम् (इत्) एव (सखित्वे) सखीनां सुखायानुकूलं वर्त्तमानानां कर्मणां भावस्तस्मिन् (ईमहे) याचामहे। ईमह इति याच्ञाकर्मसु पठितम्। (निघं०३.१९) (तम्) परमैश्वर्य्यवन्तम् (राये) विद्यासुवर्णादिधनाय (तम्) अनन्तबलपराक्रमवन्तम् (सुवीर्य्ये) शोभनैर्गुणैर्युक्तं वीर्य्यं पराक्रमो यस्मिंस्तस्मिन् (सः) पूर्वोक्तः (शक्रः) दातुं समर्थः (उत) अपि (नः) अस्मभ्यम् (शकत्) शक्नोति। अत्र लडर्थे लुङडभावश्च। (इन्द्रः) दुःखानां विदारयिता (वसु) सुखेषु वसन्ति येन तद्धनं विद्याऽऽरोग्यादिसुवर्णादि वा। वस्विति धननामसु पठितम्। (निघं०२.१०) (दयमानः) दातुं विद्यादिगुणान् प्रकाशितुं सततं रक्षितुं दुःखानि दोषान् शत्रूंश्च सर्वथा विनाशितुं धार्मिकान् स्वभक्तानादातुं समर्थः। दय दानगतिरक्षणहिंसादानेषु इत्यस्य रूपम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - सर्वैर्मनुष्यैः सर्वशुभगुणप्राप्तये परमेश्वरो याचनीयो नेतरः, कुतस्तस्याद्वितीयस्य सर्वमित्रस्य परमैश्वर्य्यवतोऽनन्तशक्तिमत एवैतद्दातुं सामर्थ्यवत्त्वात् ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व माणसांनी सर्व सुख व शुभ गुणांच्या प्राप्तीसाठी परमेश्वराची प्रार्थना करावी, कारण तो अद्वितीय सर्व मित्र ऐश्वर्यवान, अनन्त शक्तिमानच वरील पदार्थ देण्यास समर्थ असतो. ॥ ६ ॥