ब्रह्म॑णस्पते॒ त्वम॒स्य य॒न्ता सू॒क्तस्य॑ बोधि॒ तन॑यं च जिन्व। विश्वं॒ तद्भ॒द्रं यदव॑न्ति दे॒वा बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑। य इ॒मा विश्वा॑। वि॒श्वक॑र्म्मा। यो नः॑ पि॒ता। अन्न॑प॒तेऽन्न॑स्य नो देहि ॥५८ ॥
ब्रह्म॑णः। प॒ते॒। त्वम्। अ॒स्य। य॒न्ता। सू॒क्तस्येति॑ सुऽउ॒क्तस्य॑। बो॒धि॒। तन॑यम्। च॒। जि॒न्व ॥ विश्व॑म्। तत्। भ॒द्रम्। यत्। अव॑न्ति। दे॒वाः। बृ॒हत्। व॒दे॒म॒। वि॒दथे॑। सु॒वीरा॒ इति॑ सु॒ऽवीराः॑ ॥५८ ॥