Go To Mantra

अग्ने॒ ब्रह्म॑ गृभ्णीष्व ध॒रुण॑मस्य॒न्तरि॑क्षं दृꣳह ब्रह्म॒वनि॑ त्वा क्षत्र॒वनि॑ सजात॒वन्युप॑दधामि॒ भ्रातृ॑व्यस्य व॒धाय॑। ध॒र्त्रम॑सि॒ दिवं॑ दृꣳह ब्रह्म॒वनि॑ त्वा क्षत्र॒वनि॑ सजात॒वन्युप॑दधामि॒ भ्रातृ॑व्यस्य व॒धाय॑। विश्वा॑भ्य॒स्त्वाशा॑भ्य॒ऽउप॑दधामि॒ चित॑ स्थोर्ध्व॒चितो॒ भृगू॑णा॒मङ्गि॑रसां॒ तप॑सा तप्यध्वम् ॥१८॥

Mantra Audio
Pad Path

अग्ने॑। ब्रह्म॑। गृ॒भ्णी॒ष्व॒। ध॒रुण॑म्। अ॒सि॒। अ॒न्तरि॑क्षम्। दृ॒ꣳह॒। ब्र॒ह्म॒वनीति॑ ब्रह्म॒ऽवनि॑। त्वा॒। क्ष॒त्र॒वनीति॑ क्षत्र॒ऽवनि॑। स॒जा॒त॒वनीति॑ सजात॒ऽवनि॑। उप॑। द॒धा॒मि॒। भ्रातृ॑व्यस्य। व॒धाय॑। ध॒र्त्रम्। अ॒सि॒। दिव॑म्। दृ॒ꣳह॒। ब्र॒ह्म॒वनीति॑ ब्रह्म॒ऽवनि॑। त्वा॒। क्ष॒त्र॒वनीति॑ क्षत्र॒ऽवनि॑। स॒जा॒त॒वनीति॑ सजात॒ऽवनि॑। उप॑। द॒धा॒मि॒। भ्रातृ॑व्यस्य। व॒धाय॑। विश्वा॑भ्यः। त्वा॒। आशा॑भ्यः। उप॑। द॒धा॒मि॒। चितः॑। स्थ॒। ऊ॒र्ध्व॒चित॒ इत्यू॑र्ध्व॒ऽचि॒तः॑। भृगू॑णाम्। अङ्गि॑रसाम्। तप॑सा। त॒प्य॒ध्व॒म् ॥१८॥

Yajurveda » Adhyay:1» Mantra:18