त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रꣳ हवेहवे सुहवꣳ शूरमिन्द्रम् । हुवे नु शक्रं पुरुहूतमिन्द्रमिदꣳ हविर्मघवा वेत्विन्द्रः ॥३३३॥
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त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रꣳ हवेहवे सुहवꣳ शूरमिन्द्रम् । हुवे नु शक्रं पुरुहूतमिन्द्रमिदꣳ हविर्मघवा वेत्विन्द्रः ॥३३३॥