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ऋ॒जुः प॑वस्व वृजि॒नस्य॑ ह॒न्तापामी॑वां॒ बाध॑मानो॒ मृध॑श्च । अ॒भि॒श्री॒णन्पय॒: पय॑सा॒भि गोना॒मिन्द्र॑स्य॒ त्वं तव॑ व॒यं सखा॑यः ॥

English Transliteration

ṛjuḥ pavasva vṛjinasya hantāpāmīvām bādhamāno mṛdhaś ca | abhiśrīṇan payaḥ payasābhi gonām indrasya tvaṁ tava vayaṁ sakhāyaḥ ||

Pad Path

ऋ॒जुः । प॒व॒स्व॒ । वृ॒जि॒नस्य॑ । ह॒न्ता । अप॑ । अमी॑वाम् । बाध॑मानः । मृधः॑ । च॒ । अ॒भि॒ऽश्री॒णन् । पयः॑ । पय॑सा । अ॒भि । गोना॑म् । इन्द्र॑स्य । त्वम् । तव॑ । व॒यम् । सखा॑यः ॥ ९.९७.४३

Rigveda » Mandal:9» Sukta:97» Mantra:43 | Ashtak:7» Adhyay:4» Varga:19» Mantra:3 | Mandal:9» Anuvak:6» Mantra:43


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ऋजुः) शान्तभाव से शासन करनेवाले आप (वृजिनस्य) अज्ञानरूप वृजिन दोष के (हन्ता) हनन करनेवाले हैं, (अमीवां) सबप्रकार की व्याधियों को (अप) दूर करें, (च) और (मृधः) दुष्ट हिंसकों को (बाधमानः) दूर करते हुए आप (गोनाम्) इन्द्रियों की (पयसा) तृप्तिकारक वृत्ति द्वारा (पयः) ज्ञान को लक्ष्य करके (अभिश्रीणन्) आप लक्ष्य बनाए जाते हैं। (त्वम्) आप (इन्द्रस्य) कर्मयोगी के मित्र हैं, इसलिये (वयं, तव, सखायः) तुम्हारी मैत्री हम चाहते हैं, (पवस्व) आप हमें पवित्र करें ॥४३॥
Connotation: - इस मन्त्र में सब दुःखों के दूर करनेवाले परमात्मा से दुःखनिवृत्ति की प्रार्थना है अर्थात् आध्यात्मिक, आधिभौतिक तथा आधिदैविक उक्त तीनों प्रकार के तापों की निवृत्ति परमात्मा से कथन की गयी है। सायणाचार्य्य ‘ऋजुः पवस्व’ के अर्थ यहाँ सोमरस के सीधा होकर बहने के करते हैं अर्थात् क्षर के करते हैं, सो “पूञ् पवने” धातु के ये अर्थ सर्वत्र अयुक्त हैं ॥४३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ऋजुः) सरलस्वभावो भवान् (वृजिनस्य, हन्ता) अज्ञाननाशकः (अमीवां) व्याधिं (अप बाधमानः) अपसारयन् (मृधः, च) दुष्टहिंसकांश्च अपसारयन् (गोनां) इन्द्रियाणां (पयसा) तर्पकवृत्त्या (पयः) ज्ञानं लक्ष्यीकृत्य (अभिश्रीणन्) भवान् लक्ष्यीक्रियते (त्वं) भवान् (इन्द्रस्य) कर्मयोगिनः मित्रमस्ति अतः (वयं, तव, सखायः) वयमपि भवतो मित्रतां वाञ्छामः (पवस्व) अस्मान् पुनातु भवान् ॥४३॥