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अ॒भि त्रि॑पृ॒ष्ठं वृष॑णं वयो॒धामा॑ङ्गू॒षाणा॑मवावशन्त॒ वाणी॑: । वना॒ वसा॑नो॒ वरु॑णो॒ न सिन्धू॒न्वि र॑त्न॒धा द॑यते॒ वार्या॑णि ॥

English Transliteration

abhi tripṛṣṭhaṁ vṛṣaṇaṁ vayodhām āṅgūṣāṇām avāvaśanta vāṇīḥ | vanā vasāno varuṇo na sindhūn vi ratnadhā dayate vāryāṇi ||

Pad Path

अ॒भि । त्रि॒ऽपृ॒ष्ठम् । वृष॑णम् । व॒यः॒ऽधाम् । आ॒ङ्गू॒षाणा॑म् । अ॒वा॒व॒श॒न्त॒ । वाणीः॑ । वना॑ । वसा॑नः । वरु॑णः । न । सिन्धू॑न् । वि । र॒त्न॒ऽधाः । द॒य॒ते॒ । वार्या॑णि ॥ ९.९०.२

Rigveda » Mandal:9» Sukta:90» Mantra:2 | Ashtak:7» Adhyay:3» Varga:26» Mantra:2 | Mandal:9» Anuvak:5» Mantra:2


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (त्रिपृष्ठं) तीनो सवनोंवाले ब्रह्मचर्य को करते हुए (वृषणं) बलशील कर्मयोगी के उपदेश के लिये आप (वयोधां) बल को धारण करानेवाले (आङ्गूषाणां) बलदायक वाणी के प्रयोग करनेवाले हैं, ऐसे स्तोता लोगों की वाणी में (अवावशन्त) निवास करते हुए (वना वसानः) सब प्रकार की सूक्ष्म शक्तियों को धारण करते हुए (वरुणः) सबको स्वशक्ति से आच्छादन करते हुए और (सिन्धून् न) समुद्र के समान (वि रत्नधाः) नाना प्रकार के रत्नों को धारण करते हुए आप (वार्याणि) उत्तम धनों को (दयते) कर्मयोगियों के लिये देते हैं ॥२॥
Connotation: - यहाँ तीनों प्रकार के ब्रह्मचर्य का वर्णन अर्थात् ब्रह्मचर्य प्रथम २४ वें वर्ष तक दूसरा ३६ और तीसरा ४० इनको प्रथम, मध्यम, उत्तम कहते हैं। जो पुरुष उक्त प्रकार के ब्रह्मचर्यों को धारण करते हैं, उनको परमात्मा सब प्रकार के ऐश्वर्य्य प्रदान करता है ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (त्रिपृष्ठं) त्रियज्ञवद् ब्रह्मचर्य्यं सम्पादयन् (वृषणं) बलशीलकर्म्मयोगिन उपदेशाय त्वं (वयोधां) बलधारकः (आङ्गूषाणां) बलप्रदवाण्याः प्रयोजकश्चास्ति। एवं स्तोतृवाण्यां (अवावशन्त) निवसन् त्वं (वना, वसानः) सर्वप्रकाराः सूक्ष्मशक्तीर्धारयन् (वरुणः) सर्वान् स्वशक्त्याऽऽच्छादयन् (सिन्धून्, न) समुद्रतुल्यः (वि, रत्नधाः) अनेकविधरत्नानि धारयन् त्वं (वार्य्याणि) उत्तमधनानि (दयते) कर्म्मयोगिभ्यो ददासि ॥२॥