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प्र तु द्र॑व॒ परि॒ कोशं॒ नि षी॑द॒ नृभि॑: पुना॒नो अ॒भि वाज॑मर्ष । अश्वं॒ न त्वा॑ वा॒जिनं॑ म॒र्जय॒न्तोऽच्छा॑ ब॒र्ही र॑श॒नाभि॑र्नयन्ति ॥

English Transliteration

pra tu drava pari kośaṁ ni ṣīda nṛbhiḥ punāno abhi vājam arṣa | aśvaṁ na tvā vājinam marjayanto cchā barhī raśanābhir nayanti ||

Pad Path

प्र । तु । द्र॒व॒ । परि॑ । कोश॑म् । नि । सी॒द॒ । नृऽभिः॑ । पु॒ना॒नः । अ॒भि । वाज॑म् । अ॒र्ष॒ । अश्व॑म् । न । त्वा॒ । वा॒जिन॑म् । म॒र्जय॑न्तः । अच्छ॑ । ब॒र्हिः । र॒श॒नाभिः॑ । न॒य॒न्ति॒ ॥ ९.८७.१

Rigveda » Mandal:9» Sukta:87» Mantra:1 | Ashtak:7» Adhyay:3» Varga:22» Mantra:1 | Mandal:9» Anuvak:5» Mantra:1


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ARYAMUNI

इस सूक्त में ऋषिविप्रादि नामों से परमात्मा का ही वर्णन है।

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (तु) शीघ्र (प्र द्रव) गमन करो और गमन करके (कोशं) कर्म्मयोगी के अन्तःकरण को (परिनिषीद) ग्रहण करो (नृभिः) और मनुष्यों से (पुनानः) पूज्यमान आप (वाजं) बल की (अभ्यर्ष) वृष्टि करो (अश्वं) बिजली के (न) समान (त्वा वाजिनं) बलस्वरूप आपकी (मर्जयन्तः) उपासना करते हुए उपासक लोग (अच्छ बर्हिः) यज्ञ के प्रति आपकी (रशनाभिः) उपासना द्वारा (नयन्ति) आपका साक्षात्कार करते हैं ॥१॥
Connotation: - यहाँ (वाजी) नाम बलवान् का है, बलस्वरूप परमात्मा से यहाँ हृदय की शुद्धि की प्रार्थना की गई है। जो लोग ‘वाजी’ के अर्थ घोड़ा करके वेदों के अर्थों को उच्चभाव से गिराकर निन्दित बना देते हैं, वे अत्यन्त भूल करते हैं। ‘वाज’ शब्द के अर्थ अन्न, ऐश्वर्य्य और बल ही हैं, इसलिये “ये वाजिनं परिपश्यन्ति पक्वम्” इत्यादि मन्त्रों में ऐश्वर्य के परिपक्व करने का अर्थ है, घोड़ा मारने का नहीं ॥१॥
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ARYAMUNI

अस्मिन् सूक्ते ऋषिविप्रादिनामभिः परमात्मैव वर्ण्यते।

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (तु) शीघ्रं (प्र, द्रव) गच्छ। गत्वा च (कोशं) कर्म्मयोगिनोऽन्तःकरणं (परि, नि, सीद) गृहाण। (नृभिः) अपि च नरैः (पुनानः) पूज्यमानस्त्वं (वाजं) बलं (अभि, अर्ष) वर्ष। (अश्वं) विद्युतः (न) तुल्यं (त्वा, वाजिनं) बलस्वरूपं त्वां (मर्जयन्तः) उपासकाः (अच्छ, बर्हिः) यज्ञं प्रति (रशनाभिः) उपासनाभिः (नयन्ति) प्राप्नुवन्ति ॥१॥