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विश्वा॒ धामा॑नि विश्वचक्ष॒ ऋभ्व॑सः प्र॒भोस्ते॑ स॒तः परि॑ यन्ति के॒तव॑: । व्या॒न॒शिः प॑वसे सोम॒ धर्म॑भि॒: पति॒र्विश्व॑स्य॒ भुव॑नस्य राजसि ॥

English Transliteration

viśvā dhāmāni viśvacakṣa ṛbhvasaḥ prabhos te sataḥ pari yanti ketavaḥ | vyānaśiḥ pavase soma dharmabhiḥ patir viśvasya bhuvanasya rājasi ||

Pad Path

विश्वा॑ । धामा॑नि । वि॒श्व॒ऽच॒क्षः॒ । ऋभ्व॑सः । प्र॒ऽभोः । ते॒ । स॒तः । परि॑ । य॒न्ति॒ । के॒तवः॑ । वि॒ऽआ॒न॒शिः । प॒व॒से॒ । सो॒म॒ । धर्म॑ऽभिः । पतिः॑ । विश्व॑स्य । भुव॑नस्य । रा॒ज॒सि॒ ॥ ९.८६.५

Rigveda » Mandal:9» Sukta:86» Mantra:5 | Ashtak:7» Adhyay:3» Varga:12» Mantra:5 | Mandal:9» Anuvak:5» Mantra:5


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सोम) हे परमात्मन् ! आप (विश्वस्य भुवनस्य) सम्पूर्ण भुवनों के (पतिः) स्वामी हैं और (धर्मभिः) अपने नित्य-शुद्ध-बुद्ध-मुक्त स्वभावादि धर्म्मों के द्वारा (राजसि) विराजमान हैं (व्यानशिः) और सर्वत्र व्यापक होकर (पवसे) सबको पवित्र करते हो। (विश्वचक्षः प्रभोः) हे सर्वज्ञ जगत्स्वामिन् ! (ते) तुम्हारी (ऋभ्वसः) बड़ी (केतवः) शक्तियें (परियन्ति) सर्वत्र विद्यमान हैं और (ते सतः) तुम्हारी सत्ता से (विश्वा धामानि) सम्पूर्ण लोक-लोकान्तर उत्पन्न होते हैं ॥५॥
Connotation: - जो यह संसार का पति है, वह अपहतपाप्मादि धर्म्मों से सर्वत्र परिपूर्ण हो रहा है। सायणादि भाष्यकार ‘धर्म्मभिः’ के अर्थ भी सोम के वहने के करते हैं। यदि कोई इनसे पूछे कि, अस्तु धर्म्म के अर्थ वहन ही सही, पर “पतिर्विश्वस्य भुवनस्य” इस वाक्य के अर्थ जड़ सोम में कैसे संगत होते हैं। क्योंकि एक लताविशेषवस्तु सम्पूर्ण लोक-लोकान्तरों का पति कैसे हो सकती है। वास्तव में बात यह है कि मन्त्रों के आध्यात्मिक अर्थों को छोड़कर इनको केवल भौतिक अर्थ ही प्रिय लगते हैं ॥५॥ १२ ॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सोम) हे परमात्मन् ! त्वं (विश्वस्य, भुवनस्य) सर्वभुवनानां (पतिः) स्वामी असि। अपि च (धर्मभिः) नित्यादिधर्म्मैः (राजसि) विराजमानो भवसि (व्यानशिः) अपि च सर्वत्र व्यापको भूत्वा (पवसे) सर्वं पवित्रयसि (विश्वचक्षः, प्रभोः) हे सर्वज्ञ जगत्स्वामिन् ! (ते) तव (ऋभ्वसः) महत्यः (केतवः) शक्तयः (परि, यन्ति) सर्वत्र विद्यन्ते। अपि च (ते, सतः) तव सत्तायाः। (विश्वा, धामानि) अखिललोकलोकान्तराणि उत्पद्यन्ते ॥५॥