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इष॒मूर्जं॑ पवमाना॒भ्य॑र्षसि श्ये॒नो न वंसु॑ क॒लशे॑षु सीदसि । इन्द्रा॑य॒ मद्वा॒ मद्यो॒ मद॑: सु॒तो दि॒वो वि॑ष्ट॒म्भ उ॑प॒मो वि॑चक्ष॒णः ॥

English Transliteration

iṣam ūrjam pavamānābhy arṣasi śyeno na vaṁsu kalaśeṣu sīdasi | indrāya madvā madyo madaḥ suto divo viṣṭambha upamo vicakṣaṇaḥ ||

Pad Path

इष॑म् । ऊर्ज॑म् । प॒व॒मा॒न॒ । अ॒भि । अ॒र्ष॒सि॒ । श्ये॒नः । न । वंसु॑ । क॒लशे॑षु । सी॒द॒सि॒ । इन्द्रा॑य । मद्वा॑ । मद्यः॑ । मदः॑ । सु॒तः । दि॒वः । वि॒ष्ट॒म्भः । उ॒प॒मः । वि॒ऽच॒क्ष॒णः ॥ ९.८६.३५

Rigveda » Mandal:9» Sukta:86» Mantra:35 | Ashtak:7» Adhyay:3» Varga:18» Mantra:5 | Mandal:9» Anuvak:5» Mantra:35


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! आप (इषं) ऐश्वर्य्य और (ऊर्जं) बल को (अभ्यर्षसि) देते हैं। (श्येनो न ) जिस प्रकार बिजली (वंसु कलशेषु) निवासयोग्य स्थानों में स्थिर होती है, इसी प्रकार (सीदसि) आप पवित्र अन्तःकरणों में स्थिर होते हैं। (इन्द्राय) आप कर्म्मयोगी के लिये (मद्वा) आनन्द करनेवाले (मद्यः) और आनन्द के हेतु हैं। (मदः) स्वयं आनन्दस्वरूप हैं। (सुतः) स्वयंसिद्ध हैं। (दिवो विष्टम्भः) द्युलोक के आधार हैं (उपमः) और द्युलोक की उपमावाले हैं। (विचक्षणः) सर्वोपरि प्रवक्ता हैं ॥३५॥
Connotation: - परमात्मा द्युभ्वादि लोकों का आधार है और उसी के आधार में चराचर सृष्टि की स्थिति है और वेदादि विद्याओं का प्रवक्ता होने से वह सर्वोपरि विचक्षण है ॥३५॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (पवमान) हे सर्वपावकपरमात्मन् ! त्वम् (इषं) ऐश्वर्य्यमपि च (ऊर्जं) बलं (अभि, अर्षसि) ददासि श्येनः, (न) यथा विद्युत् (वंसु, कलशेषु) निवासयोग्यस्थानेषु स्थिता भवति, तथैव (सीदसि) त्वं पवित्रेऽन्तःकरणे स्थिरो भवसि। (इन्द्राय) कर्म्मयोगिने (मद्वा) आनन्दकर्ता (मद्यः) आनन्दहेतुः (मदः) अपि चानन्दस्वरूपोऽसि (सुतः) स्वयंसिद्धः (दिवः, विष्टम्भः) द्युलोकस्याश्रयः अपरञ्च (उपमः) द्युलोकस्योपमायोग्यः किञ्च (विचक्षणः) सर्वोपरि प्रवक्ता असि ॥३५॥