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शुचि॑: पुना॒नस्त॒न्व॑मरे॒पस॒मव्ये॒ हरि॒र्न्य॑धाविष्ट॒ सान॑वि । जुष्टो॑ मि॒त्राय॒ वरु॑णाय वा॒यवे॑ त्रि॒धातु॒ मधु॑ क्रियते सु॒कर्म॑भिः ॥

English Transliteration

śuciḥ punānas tanvam arepasam avye harir ny adhāviṣṭa sānavi | juṣṭo mitrāya varuṇāya vāyave tridhātu madhu kriyate sukarmabhiḥ ||

Pad Path

शुचिः॑ । पु॒ना॒नः । त॒न्व॑म् । अ॒रे॒पस॑म् । अव्ये॑ । हरिः॑ । नि । अ॒धा॒वि॒ष्ट॒ । सान॑वि । जुष्टः॑ । मि॒त्राय॑ । वरु॑णाय । वा॒यवे॑ । त्रि॒ऽधातु॑ । मधु॑ । क्रि॒य॒ते॒ । सु॒कर्म॑ऽभिः ॥ ९.७०.८

Rigveda » Mandal:9» Sukta:70» Mantra:8 | Ashtak:7» Adhyay:2» Varga:24» Mantra:3 | Mandal:9» Anuvak:4» Mantra:8


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सुकर्मभिः) सुन्दर कर्मों से (त्रिधातु) कफ वात पित्तात्मक (अरेपसम्) पापरहित (तन्वम्) शरीर (मित्राय वरुणाय वायवे) अध्यापक उपदेशक और कर्मयोगी बनने के लिये (मधु क्रियते) जिसने संस्कृत किया है, वह पुरुष (अव्ये सानवि) सर्वरक्षक परमात्मा के स्वरूप में (न्यधाविष्ट) स्थिर होता है। जो परमात्मा (हरिः) पापों का हरण करनेवाला है और (शुचिः) पवित्र है तथा (पुनानः) पवित्र करनेवाला है और (जुष्टः) प्रीति से सेव्य है ॥८॥
Connotation: - जो लोग अपने इन्द्रियसंयम द्वारा वा यज्ञादि कर्मों द्वारा इस शरीर का संस्कार करते हैं, वे मानो इस शरीर को मधुमय बनाते हैं। जैसे कि “महायज्ञैश्च यज्ञैश्च ब्राह्मीयं क्रियते तनुः” इत्यादि वाक्यों में यह कहा है कि अनुष्ठान से पुरुष इस तनु को ब्राह्मी अर्थात् ब्रह्मा से सम्बन्ध रखनेवाली बना लेता है। इसी भाव का उपदेश इस मन्त्र में किया गया है ॥८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सुकर्मभिः) सुन्दरकृत्यैः (त्रिधातु) कफवातपित्तात्मकं (अरेपसम्) पापशून्यं (तन्वम्) शरीरम् (मित्राय वरुणाय वायवे) अध्यापकत्वोपदेशकत्वकर्मयोगित्वसम्पादनाय (मधु क्रियते) यः संस्करोति स पुरुषः (अव्ये सानवि) सर्वरक्षकस्य परमात्मनः स्वरूपे (न्यधाविष्ट) स्थिरो भवति। यः परमात्मा (हरिः) पापानां नाशकोऽस्ति। अथ च (शुचिः) पवित्रोऽस्ति। तथा (पुनानः) पावकः (जुष्टः) प्रीत्या संसेवनीयोऽस्ति ॥८॥