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ए॒वा न॑: सोम परिषि॒च्यमा॑नो॒ वयो॒ दध॑च्चि॒त्रत॑मं पवस्व । अ॒द्वे॒षे द्यावा॑पृथि॒वी हु॑वेम॒ देवा॑ ध॒त्त र॒यिम॒स्मे सु॒वीर॑म् ॥

English Transliteration

evā naḥ soma pariṣicyamāno vayo dadhac citratamam pavasva | adveṣe dyāvāpṛthivī huvema devā dhatta rayim asme suvīram ||

Pad Path

ए॒व । नः॒ । सो॒म॒ । प॒रि॒ऽसि॒च्यमा॑नः । वयः॑ । दध॑त् । चि॒त्रऽत॑मम् । प॒व॒स्व॒ । अ॒द्वे॒षे । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । हु॒वे॒म॒ । देवाः॑ । ध॒त्त । र॒यिम् । अ॒स्मे इति॑ । सु॒ऽवीर॑म् ॥ ९.६८.१०

Rigveda » Mandal:9» Sukta:68» Mantra:10 | Ashtak:7» Adhyay:2» Varga:20» Mantra:5 | Mandal:9» Anuvak:4» Mantra:10


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सोम) हे परमात्मन् ! (परिषिच्यमानः) ज्ञानयोग और कर्मयोग से साक्षात्कृत आप (नः) हम लोगों को (चित्रतमं) नानाविध (वयः) बल को (दधत् एव) अवश्य धारण कराते हुए (पवस्व) पवित्र करें तथा (अद्वेषे द्यावापृथिवी) द्युलोक और पृथिवीलोक को द्वेष से रहित होने की (हुवेम) हम लोग प्रार्थना करते हैं और (देवाः) दिव्यगुणसंपन्न विद्वान् (अस्मे) हम लोगों में (सुवीरं रयिं) सुन्दर वीरोंवाले ऐश्वर्य को (धत्त) धारण कराएँ ॥१०॥
Connotation: - जो लोग कर्मयोगी और ज्ञानयोगियों की संगति में रहते हैं, उनके लिए परमात्मा नानाविध ऐश्वर्यों को देता है और द्युलोक और पृथिवीलोक उनके द्वेषियों से सर्वथा रहित हो जाता है। अर्थात् वे मित्रता की दृष्टि से सबको देखते हैं ॥१०॥ यह ६८ वाँ सूक्त और २० वाँ वर्ग समाप्त हुआ।
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सोम) चराचरोत्पादक परमात्मन् ! (परिषिच्यमानः) ज्ञानयोगकर्मयोगाभ्यां साक्षात्कृतो भवान् (नः) अस्मान् (चित्रतमम्) अनेकविधं (वयः) बलं (दधदेव) धारयन् (पवस्व) पवित्रयतु। तथा (अद्वेषे द्यावापृथिवी) द्वेषरहितस्य द्युलोकपृथिवीलोकस्य (हुवेम) प्रार्थनां कुर्मः। अथ च (देवाः) दिव्यगुणसम्पन्ना विद्वांसः (अस्मे) अस्मासु (सुवीरं रयिम्) वीरयुक्तमैश्वर्यं (धत्त) धारयन्तु ॥१०॥ इत्यष्टषष्टितमं सूक्तं विंशो वर्गश्च समाप्तः।