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यः पा॑वमा॒नीर॒ध्येत्यृषि॑भि॒: सम्भृ॑तं॒ रस॑म् । सर्वं॒ स पू॒तम॑श्नाति स्वदि॒तं मा॑त॒रिश्व॑ना ॥

English Transliteration

yaḥ pāvamānīr adhyety ṛṣibhiḥ sambhṛtaṁ rasam | sarvaṁ sa pūtam aśnāti svaditam mātariśvanā ||

Pad Path

यः । पा॒व॒मा॒नीः । अ॒धि॒ऽएति॑ । ऋषि॑ऽभिः । सम्ऽभृ॑तम् । रस॑म् । सर्व॒म् । सः । पू॒तम् । अ॒श्ना॒ति॒ । स्व॒दि॒तम् । मा॒त॒रिश्व॑ना ॥ ९.६७.३१

Rigveda » Mandal:9» Sukta:67» Mantra:31 | Ashtak:7» Adhyay:2» Varga:18» Mantra:6 | Mandal:9» Anuvak:3» Mantra:31


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यः) जो जन (पावमानीः) परमैश्वर्य स्तुतिरूप ऋचाओं को (अध्येति) पढ़ता है, (सः) वह (ऋषिभिः) मन्त्रद्रष्टाओं से (संभृतं) स्पष्ट किया हुआ (रसं) ब्रह्मानन्द को (अश्नाति) भोगता है और (सर्वं) सम्पूर्ण (मातरश्विना स्वदितं) वायु से स्वादूकृत (पूतं) पवित्र पदार्थों को (अश्नाति) भोगता है ॥३१॥
Connotation: - जो लोग परमात्मा के पवित्र गुणों का सहारा लेते हैं, वे ब्रह्मानन्दरस का पान करते हैं और उनके लिए वायु के पवित्र किये हुए पदार्थ मधुर रसों के प्रदाता होते हैं। तात्पर्य यह है कि वायु फलों में एक प्रकार का माधुर्य उत्पन्न करता है, उस माधुर्य के भोक्ता पुण्यात्मा ही हो सकते हैं, अन्य नहीं ॥३१॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यः) योजनः (पावमानीः) परमेश्वरस्तुतिरूपा ऋचः (अध्येति) पठति (सः) स पुरुषः (ऋषिभिः) मन्त्रद्रष्ट्रिभिः (सम्भृतम्) स्पष्टीकृतं (रसम्) ब्रह्मानन्दं (अश्नाति) भुनक्ति “रसो वै सः रसं ह्येवायं लब्ध्वाऽऽनन्दी भवति” इति तै. २।७। अथ च (सर्वम्) सम्पूर्णं (मातरिश्वना स्वदितम्) वायुना स्वादूकृतं (पूतम्) शुद्धं पदार्थमश्नाति ॥३१॥