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आ ययो॑स्त्रिं॒शतं॒ तना॑ स॒हस्रा॑णि च॒ दद्म॑हे । तर॒त्स म॒न्दी धा॑वति ॥

English Transliteration

ā yayos triṁśataṁ tanā sahasrāṇi ca dadmahe | tarat sa mandī dhāvati ||

Pad Path

आ । ययोः॑ । त्रिं॒शत॑म् । तना॑ । स॒हस्रा॑णि । च॒ । दद्म॑हे । तर॑त् । सः । म॒न्दी । धा॒व॒ति॒ ॥ ९.५८.४

Rigveda » Mandal:9» Sukta:58» Mantra:4 | Ashtak:7» Adhyay:1» Varga:15» Mantra:4 | Mandal:9» Anuvak:2» Mantra:4


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ययोः) जिन शक्तियों से (त्रिंशतं तना) हम तीन सौ वर्ष तक दीर्घायु और (सहस्राणि च आदद्महे) सहस्रों शक्तियों को उत्पन्न कर सकते हैं। ऐसी शक्तियोंवाला (मन्दी) आह्लादजनक (सः) वह परमात्मा (तरत्) सब पापियों को तारता हुआ (धावति) सम्पूर्ण संसार में व्याप्त हो रहा है ॥४॥
Connotation: - यद्यपि साधारणतया मनुष्य के आयु की अवधि सौ वर्ष तक है, तथापि कर्मयोगी अपने उग्र कर्मों द्वारा अपनी आयु को बढ़ा सकते हैं, इसीलिए “भूयश्व शरदः श्तात्“ इस वाक्य में सौ से अधिक की प्रार्थना की गई है और जो इस मन्त्र में पापों के नाश का कथन है, वह पापवासना के क्षय के अभिप्राय से है, प्रारब्ध कर्मों के नाश के अभिप्राय से नहीं ॥४॥ यह ५८ वाँ सूक्त और १५ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ययोः) याभिः शक्तिभिः (त्रिंशतं तना) वयं शतत्रयवत्सरपर्यन्तं दीर्घायुषः तथा (सहस्राणि च आदद्महे) सहस्रशक्त्युत्पादनं कर्तुं शक्नुमः। एतादृक्छक्तिसम्पन्नः (मन्दी) आनन्दकारकः (सः) स परमात्मा (तरत्) सर्वपापिनस्तारयन् (धावति) अखिलसंसारं व्याप्तो भवति ॥४॥ इत्यष्टपञ्चाशत्तमं सूक्तं पञ्चदशो वर्गश्च समाप्तः ॥