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अस॑र्जि॒ रथ्यो॑ यथा प॒वित्रे॑ च॒म्वो॑: सु॒तः । कार्ष्म॑न्वा॒जी न्य॑क्रमीत् ॥

English Transliteration

asarji rathyo yathā pavitre camvoḥ sutaḥ | kārṣman vājī ny akramīt ||

Pad Path

अस॑र्जि । रथ्यः॑ । य॒था॒ । प॒वित्रे॑ । च॒म्वोः॑ । सु॒तः । कार्ष्म॑न् । वा॒जी । नि । अ॒क्र॒मी॒त् ॥ ९.३६.१

Rigveda » Mandal:9» Sukta:36» Mantra:1 | Ashtak:6» Adhyay:8» Varga:26» Mantra:1 | Mandal:9» Anuvak:2» Mantra:1


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ARYAMUNI

अब परमात्मा को रै और प्राणरूप शक्ति के आधाररूप से वर्णन करते हैं।

Word-Meaning: - (रथ्यः) सब गतिशील पदार्थों को गति देनेवाला वह परमात्मा (चम्वोः सुतः) रै और प्राणरूप दोनों शक्तियों में प्रसिद्ध है और उसने (यथा असर्जि) पूर्ववत् सब संसार को पैदा किया और (वाजी) श्रेष्ठ बलवाला वह परमात्मा (पवित्रे कार्ष्मन् न्यक्रमीत्) भजन द्वारा उसको आकर्षण करनेवाले भक्तों के पवित्र हृदय में आकर विराजमान होता है ॥१॥
Connotation: - यद्यपि परमात्मा अपनी व्यापकता से प्रत्येक पुरुष के हृदय में विद्यमान है, तथापि जो पुरुष अपने अन्तःकरण को निर्मल रखते हैं, उनके हृदय में उसकी स्फुट प्रतीति होती है, इसी अभिप्राय से कथन किया है कि वह भक्तों के हृदय में विराजमान है ॥१॥
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ARYAMUNI

अथ परमात्मनः शक्तिद्वयाश्रयत्वं वर्ण्यते।

Word-Meaning: - (रथ्यः) सर्वगतिशीलपदार्थेभ्यो गतिदः परमात्मा (चम्वोः सुतः) रैप्राणरूपयोर्द्वयोः शक्त्योः प्रसिद्धः किञ्च सः (यथा असर्जि) पूर्ववत् सर्वं लोकं समजीजनत् अथ च (वाजी) प्रबलः सः (पवित्रे कार्ष्मन् न्यक्रमीत्) अर्चनया स्वाकर्षणसमर्थानां भक्तानां पवित्रे हृदय आगत्य विराजते ॥१॥