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ए॒ष विश्वा॑नि॒ वार्या॒ शूरो॒ यन्नि॑व॒ सत्व॑भिः । पव॑मानः सिषासति ॥

English Transliteration

eṣa viśvāni vāryā śūro yann iva satvabhiḥ | pavamānaḥ siṣāsati ||

Pad Path

ए॒षः । विश्वा॑नि । वार्या॑ । शूरः॑ । यन्ऽइ॑व । सत्व॑ऽभिः । पव॑मानः । सि॒सा॒स॒ति॒ ॥ ९.३.४

Rigveda » Mandal:9» Sukta:3» Mantra:4 | Ashtak:6» Adhyay:7» Varga:20» Mantra:4 | Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:4


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (एषः) यह पूर्वोक्त देव (विश्वानि) सम्पूर्ण (वार्या) धनों का (सिषासति) विभाग करता है। (इव) जिस प्रकार (शूरः) शूरवीर (सत्वभिः) अपने पराक्रमों से (यन्) आक्रमण करता हुआ सच-झूठ का निपटारा कर देता है ॥४॥
Connotation: - परमात्मदेव अपने ऐश्वर्य्यों का विभाग पात्र-अपात्र समझकर करता है। जिसको वह अपने ऐश्वर्य्य का पात्र समझता है, उसको ऐश्वर्य्य देता है और जिसको अपात्र समझता है, उससे ऐश्वर्य्य हर लेता है। जिस प्रकार पात्र अपनी बनावट और अपने गुण-कर्म्म-स्वभाव से पात्रता को प्राप्त है, वा यों कहो कि पूर्वकृत प्रारब्ध कर्मों से वह उपादेय वस्तु को प्राप्त होने योग्य बनाता है ॥ जो लोग निष्कर्म्म मन्दभागी और आलसी हैं, वे सदैव ईश्वर के ऐश्वर्य्य से वञ्चित रहते हैं, इसीलिये उनको अपात्र कहा है। उक्त मन्त्र में शूरवीर का दृष्टान्त इस अभिप्राय से दिया है कि जिस प्रकार शूरवीर के निपटारा करने के बाद किसी को अतोष तथा ननु नच करने का अवकाश नहीं मिलता, उसी प्रकार परमात्मा के निपटारा करने पर फिर किसी को झगड़े अथवा ननु नच करने का अवकाश नहीं रहता ॥४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (एषः) पूर्वोक्तो देवः (विश्वानि) सर्वाणि (वार्या) धनानि (सिषासति) विभजति। (इव) यथा (शूरः) वीरः (सत्वभिः) आत्मपराक्रमैः (यन्) आक्रामन् सर्वमसत्यमपाकरोति ॥४॥