अ॒प॒घ्नन्तो॒ अरा॑व्ण॒: पव॑मानाः स्व॒र्दृश॑: । योना॑वृ॒तस्य॑ सीदत ॥
English Transliteration
apaghnanto arāvṇaḥ pavamānāḥ svardṛśaḥ | yonāv ṛtasya sīdata ||
Pad Path
अ॒प॒ऽघ्नन्तः॑ । अरा॑व्णः । पव॑मानाः । स्वः॒ऽदृशः॑ । योनौ॑ । ऋ॒तस्य॑ । सी॒द॒त्स॒ ॥ ९.१३.९
Rigveda » Mandal:9» Sukta:13» Mantra:9
| Ashtak:6» Adhyay:8» Varga:2» Mantra:4
| Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:9
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (अराव्णः) दुष्टों को (अपघ्नन्तः) दारुण दण्ड देनेवाला (पवमानाः) सत्कर्मियों को पवित्र करनेवाला (स्वर्दृशः) सर्वद्रष्टा परमात्मा (ऋतस्य) सत्कर्मरूपी यज्ञ की (योनौ) वेदी में (सीदत) आकर विराजमान हो ॥९॥
Connotation: - कर्मयोगी और ज्ञानयोगियों के यज्ञों में परमात्मा अपने सद्भावों से आकर विराजमान होता है। तात्पर्य यह है कि परमात्मा के भाव सत्कर्मों द्वारा अभिव्यक्त होते हैं, इसीलिये आकर विराजना कथन किया गया है। वस्तुतः परमात्मा सदैव कूटस्थनित्य है, कहीं जाता आता नहीं, इसी अभिप्राय से कहा है कि “तदेजति तन्नैजति तद्दूरे तद्वन्तिके” यजु ४०।५। वह अज्ञानियों की दृष्टि से दूर है, वास्तव में समीप है, इस प्रकार वेद उसको सर्वत्र गतिरहित वर्णन करता है ॥९॥ यह तेरहवाँ सूक्त और दूसरा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (अराव्णः) दुष्टान् (अपघ्नन्तः) दारुणं दण्डं ददत् (पवमानाः) सतः पावयन् (स्वर्दृशः) सर्वद्रष्टा परमात्मा (ऋतस्य) सत्कर्मरूपयज्ञस्य (योनौ) वेद्याम् (सीदत) आगत्य तिष्ठतु ॥९॥ इति त्रयोदशं सूक्तं द्वितीयो वर्गश्च समाप्तः ॥