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यत्र॒ ज्योति॒रज॑स्रं॒ यस्मिँ॑ल्लो॒के स्व॑र्हि॒तम् । तस्मि॒न्मां धे॑हि पवमाना॒मृते॑ लो॒के अक्षि॑त॒ इन्द्रा॑येन्दो॒ परि॑ स्रव ॥

English Transliteration

yatra jyotir ajasraṁ yasmim̐l loke svar hitam | tasmin māṁ dhehi pavamānāmṛte loke akṣita indrāyendo pari srava ||

Pad Path

यत्र॑ । ज्योतिः॑ । अज॑स्रम् । यस्मि॑न् । लो॒के । स्वः॑ । हि॒तम् । तस्मि॑न् । माम् । धे॒हि॒ । प॒व॒मा॒न॒ । अ॒मृते॑ । लो॒के । अक्षि॑ते । इन्द्रा॑य । इ॒न्दो॒ इति॑ । परि॑ । स्र॒व॒ ॥ ९.११३.७

Rigveda » Mandal:9» Sukta:113» Mantra:7 | Ashtak:7» Adhyay:5» Varga:27» Mantra:2 | Mandal:9» Anuvak:7» Mantra:7


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यत्र) जिस मोक्ष में (अजस्रं, ज्योतिः) निरन्तर ज्योति का प्रकाश होता तथा (यस्मिन्, लोके) जिस ज्ञान में (स्वः, हितं) सुख ही सुख होता है, (तस्मिन्, अमृते) उस अमृत अवस्था में (अक्षिते) जो वृद्धि तथा क्षय से रहित है, (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (मां, धेहि) मुझे रखें। (इन्दो) हे प्रकाशकस्वरूप परमात्मन् ! (इन्द्राय) उक्त ज्ञानयोगी के लिये आप (परि, स्रव) पूर्णाभिषेक का कारण बनें ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में यह प्रार्थना की गई है कि हे परमात्मन् ! ज्ञानयोगी तथा कर्मयोगी के लिये सदुपदेशरूप वाणी प्रदान करें और वृद्धि तथा क्षय से रहित अमृत अवस्था प्राप्त करायें, जिससे वेदरूप वाणी का प्रकाश हो और आप अपनी कृपा से ज्ञानयोगी को अभिषिक्त करें ॥७॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यत्र) यत्र मोक्षे  (अजस्रं, ज्योतिः)  सततं  ज्योतिः  प्रकाशते (यस्मिन्, लोके)  यत्र  ज्ञाने च (स्वः, हितं)  केवलं  सुखमेव (तस्मिन्, अमृते)  यत्रामृतावस्थायां  (अक्षिते)  वृद्धिक्षयरहितायां (पवमान) हे सर्वस्य पावयितः ! (मां, धेहि) मां निवासयतु  (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप !  (इन्द्राय)  उक्तज्ञानयोगिने  भवान् (परि, स्रव) पूर्णाभिषेकहेतुरस्तु ॥७॥