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श॒र्य॒णाव॑ति॒ सोम॒मिन्द्र॑: पिबतु वृत्र॒हा । बलं॒ दधा॑न आ॒त्मनि॑ करि॒ष्यन्वी॒र्यं॑ म॒हदिन्द्रा॑येन्दो॒ परि॑ स्रव ॥

English Transliteration

śaryaṇāvati somam indraḥ pibatu vṛtrahā | balaṁ dadhāna ātmani kariṣyan vīryam mahad indrāyendo pari srava ||

Pad Path

श॒र्य॒णाऽव॑ति । सोम॑म् । इन्द्रः॑ । पि॒ब॒तु॒ । वृ॒त्र॒ऽहा । बल॑म् । दधा॑नः । आ॒त्मनि॑ । क॒रि॒ष्यन् । वी॒र्य॑म् । म॒हत् । इन्द्रा॑य । इ॒न्दो॒ इति॑ । परि॑ । स्र॒व॒ ॥ ९.११३.१

Rigveda » Mandal:9» Sukta:113» Mantra:1 | Ashtak:7» Adhyay:5» Varga:26» Mantra:1 | Mandal:9» Anuvak:7» Mantra:1


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ARYAMUNI

अब प्रसङ्गसंगति से राजधर्म का निरूपण करते हैं।

Word-Meaning: - (शर्यणावति) कर्मयोगी में (सोमं) ईश्वरानन्दरूप (इन्द्रः) “इन्दतीतीन्द्रः”=परमैश्वर्य्य को प्राप्त होनेवाला राजा (पिबतु) पान करे, वह राजा (वृत्रहा) शत्रुरूप बादलों के नाश करनेवाला होता है, (बलं, दधानः) बल को धारण करता हुआ और (आत्मनि) अपने आत्मा में (महत्, वीर्यं) बड़े बल को (करिष्यन्) उत्पन्न करता हुआ राज्यपद के योग्य होता है, (इन्द्राय) ऐसे बलवीर्य्यसम्पन्न राजा के लिये (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! आप (परि, स्रव) राज्याभिषेक का निमित्त बनें ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र का भाव यह है कि जो राजा कर्मयोगी तथा ज्ञानयोगियों के सदुपदेश से ब्रह्मानन्दपान करता है, वह राजा बनने योग्य होता है। हे परमात्मन् ! ऐसे राजा को राज्याभिषेक से अभिषिक्त करें ॥१॥
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ARYAMUNI

अथ प्रसङ्गसङ्गत्या राजधर्मो निरूप्यते।

Word-Meaning: - (शर्यणावति)  कर्मयोगिनि  (सोमं)  ईश्वरानन्दं (इन्द्रः)  परमैश्वर्यं प्राप्स्यन् राजा (पिबतु) पिबेत्  स राजा  (वृत्रहा)  शत्रुरूपमेघान् नाशयति (बलं, दधानः) बलं धारयन् (आत्मनि)  स्वस्मिन् (महत्, वीर्यं) अतिबलं (करिष्यन्) उत्पादयन्  राज्यार्हो  भवति (इन्द्राय) ईदृशे राज्ञे  (इन्दो)  हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! भवान्  (परि, स्रव) अभिषेकहेतुर्भवतु ॥१॥