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दि॒वः पी॒यूषं॑ पू॒र्व्यं यदु॒क्थ्यं॑ म॒हो गा॒हाद्दि॒व आ निर॑धुक्षत । इन्द्र॑म॒भि जाय॑मानं॒ सम॑स्वरन् ॥

English Transliteration

divaḥ pīyūṣam pūrvyaṁ yad ukthyam maho gāhād diva ā nir adhukṣata | indram abhi jāyamānaṁ sam asvaran ||

Pad Path

दि॒वः । पी॒यूष॑म् । पू॒र्व्यम् । यत् । उ॒क्थ्य॑म् । म॒हः । गा॒हात् । दि॒वः । आ । निः । अ॒धु॒क्ष॒त॒ । इन्द्र॑म् । अ॒भि । जाय॑मानम् । सम् । अ॒स्व॒र॒न् ॥ ९.११०.८

Rigveda » Mandal:9» Sukta:110» Mantra:8 | Ashtak:7» Adhyay:5» Varga:23» Mantra:2 | Mandal:9» Anuvak:7» Mantra:8


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (दिवः, पीयूषं) जो द्युलोक का अमृत (पूर्व्य) सनातन (उक्थ्यं) प्रशंसनीय (यत्) जो (महः, गाहात्) बड़े गहन (दिवः) द्युलोक से (आ, निः, अधुक्षत) भली-भाँति दोहन किया गया है (इन्द्रं, अभि) जो कर्मयोगी को लक्ष्य रखकर (जायमानं) विद्यमान है, उस परमात्मा की उपासक लोग (सं, अस्वरन्) भले प्रकार स्तुति करते हैं ॥८॥
Connotation: - द्युलोक का अमृत परमात्मा को इस अभिप्राय से कथन किया गया है कि “पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि” ऋग्. १०।९०।३। इस मन्त्र में यह वर्णन किया है कि यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड उसके एकदेश में है और अनन्त परमात्मा अमृतरूप से द्युलोक में विस्तृत हो रहा है अर्थात् उसका अमृतस्वरूप अनन्त नभोमण्डल में सर्वत्र परिपूर्ण हो रहा है, ऐसे सर्वव्यापक परमात्मा की उपासक लोग स्तुति करते हैं ॥८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (दिवः, पीयूषं)  यः  द्युलोकस्यामृतं  (पूर्व्यं)  सनातनः  (यत्) यः (उक्थ्यं) प्रशंसनीयः (महः, गाहात्) अतिगहनात् (दिवः)  द्युलोकात् (आ, निः, अधुक्षत) साध्वदोहि (इन्द्रं, अभि)  कर्मयोगिनमभिलक्ष्य (जायमानं) यो विद्यमानस्तं  (परमात्मानं)  साधवः  (सं, अस्वरन्) स्तुवन्ति ॥८॥