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अ॒भि ते॒ मधु॑ना॒ पयोऽथ॑र्वाणो अशिश्रयुः । दे॒वं दे॒वाय॑ देव॒यु ॥

English Transliteration

abhi te madhunā payo tharvāṇo aśiśrayuḥ | devaṁ devāya devayu ||

Pad Path

अ॒भि । ते॒ । मधु॑ना । पयः॑ । अथ॑र्वाणः । अ॒शि॒श्र॒युः॒ । दे॒वम् । दे॒वाय॑ । दे॒व॒ऽयु ॥ ९.११.२

Rigveda » Mandal:9» Sukta:11» Mantra:2 | Ashtak:6» Adhyay:7» Varga:36» Mantra:2 | Mandal:9» Anuvak:1» Mantra:2


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - हे परमात्मन् (ते) तुमको (अथर्वाणः) “न थर्वति स्वाधिकारं न मुञ्चतीत्यथर्वा” जो अपने अधिकार को न छोड़े, उसका नाम अथर्वा है, ऐसे दृढ़विश्वासी विद्वान् (अशिश्रयुः) आश्रयण करते हैं, जो तुम (देवाय) दिव्य शक्तियों के देने के लिये (देवम्) एकमात्र देव हो और (देवयु) “देवमिच्छतीति देवयु” शक्ति की इच्छा करनेवाला पुरुष (पयः) आपके रस को (मधुना) मधुरता के साथ (अभि) भली-भाँति ग्रहण करता है ॥२॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे दृढ़विश्वासी विद्वानों ! आप लोग उस रस का पान करो, जिससे बढ़कर संसार में अन्य कोई रस नहीं और उपास्यत्वेन उस देव का आश्रयण करो, जिससे बढ़ कर और कोई उपास्य नहीं। वास्तव में बात भी यही है कि परमात्मा के आनन्द के बराबर और कोई आनन्द नहीं, इसी अभिप्राय से कहा है कि “रसो ह्येव सः रसं हि लब्ध्वा एष आनन्दी भवति” तै० २।७। परमात्मा रस अर्थात् आनन्दरूप है, उसके आनन्द को लाभ करके पुरुष आनन्दित होता है। इसी अभिप्राय से गीता में कहा है कि “यं लब्ध्वा नापरो लाभः” उसको प्राप्त करने के अनन्तर फिर कोई प्राप्तव्य वस्तु नहीं रहती ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (ते) त्वां (अथर्वाणः) दृढविश्वासवन्तो विद्वांसः (अशिश्रयुः) आश्रयन्ते यस्त्वं (देवाय) दिव्यशक्तिप्रदानाय (देवम्) केवलदेवोऽसि तथा (देवयु) दिव्यशक्तिमिच्छुर्जनः (पयः) भवद्रसम् (मधुना) माधुर्येण (अभि) सम्यग्गृह्णाति ॥२॥