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य उ॒स्रिया॒ अप्या॑ अ॒न्तरश्म॑नो॒ निर्गा अकृ॑न्त॒दोज॑सा । अ॒भि व्र॒जं त॑त्निषे॒ गव्य॒मश्व्यं॑ व॒र्मीव॑ धृष्ण॒वा रु॑ज ॥

English Transliteration

ya usriyā apyā antar aśmano nir gā akṛntad ojasā | abhi vrajaṁ tatniṣe gavyam aśvyaṁ varmīva dhṛṣṇav ā ruja ||

Pad Path

यः । उ॒स्रियाः॑ । अप्याः॑ । अ॒न्तः । अश्म॑नः । निः । गाः । अकृ॑न्तत् । ओज॑सा । अ॒भि । व्र॒जम् । त॒त्नि॒षे॒ । गव्य॑म् । अश्व्य॑म् । व॒र्मीऽइ॑व । धृ॒ष्णो॒ इति॑ । आ । रु॒ज॒ ॥ ९.१०८.६

Rigveda » Mandal:9» Sukta:108» Mantra:6 | Ashtak:7» Adhyay:5» Varga:18» Mantra:1 | Mandal:9» Anuvak:7» Mantra:6


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यः) जो परमात्मा (अप्याः, उस्रियाः) अपनी व्याप्तिशील शक्तियों से (अन्तरश्मनः) मेघों के भीतर (ओजसा, अकृन्तत्) बल से छेदन करता हुआ (निर्गाः) निरन्तर शब्दायमान होकर (व्रजम्) इस ब्रह्माण्डरूपी समुदाय के समक्ष (अभि, तत्निषे) चारों ओर व्याप्त हो रहा है और जो (गव्यम्) ज्ञान तथा (अश्व्यम्) कर्म की शक्तियों को (वर्मीव) कवच के समान धारण कर रहा है, उससे यह प्रार्थना है कि (धृष्णो) हे धृतिरूप परमात्मन् ! (आरुज) आप हमारी बाधक शक्तियों को नाश करें ॥६॥
Connotation: - वह पूर्ण परमात्मा जो इस ब्रह्माण्ड में सर्वत्र परिपूर्ण हो रहा है, वही मङ्गलमय प्रभु सब विघ्नों को निवृत्त करके कल्याण का देनेवाला और वही सब पापों का क्षय करनेवाला है ॥६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यः) यः परमात्मा (अप्याः, उस्रियाः) व्याप्तिशीलस्वशक्तिभिः (अन्तरश्मनः) मेघान्तः (ओजसा, अकृन्तत्) बलेन छिन्दन् (निर्गाः) सदा शब्दायते (व्रजम्, अभि) ब्रह्माण्डमभि (तत्निषे) सर्वत्र व्याप्तः, यश्च (गव्यम्) ज्ञानसम्बन्धिनीं (अश्व्यम्) कर्मसम्बन्धिनीं च शक्तिं (वर्मीव) कवचमिव धारयति तस्मादिदं प्रार्थनीयं यत् (धृष्णो) हे धृतिरूप परमात्मन् ! (आरुज) भवान् मम बाधकशक्तीर्नाशयतु ॥६॥