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वृषा॒ वि ज॑ज्ञे ज॒नय॒न्नम॑र्त्यः प्र॒तप॒ञ्ज्योति॑षा॒ तम॑: । स सुष्टु॑तः क॒विभि॑र्नि॒र्णिजं॑ दधे त्रि॒धात्व॑स्य॒ दंस॑सा ॥

English Transliteration

vṛṣā vi jajñe janayann amartyaḥ pratapañ jyotiṣā tamaḥ | sa suṣṭutaḥ kavibhir nirṇijaṁ dadhe tridhātv asya daṁsasā ||

Pad Path

वृषा॑ । वि । ज॒ज्ञे॒ । ज॒नय॑न् । अम॑र्त्यः । प्र॒ऽतप॑न् । ज्योति॑षा । तमः॑ । सः । सुऽस्तु॑तः । क॒विऽभिः॑ । निः॒ऽनिज॑म् । द॒धे॒ । त्रि॒ऽधातु॑ । अ॒स्य॒ । दंस॑सा ॥ ९.१०८.१२

Rigveda » Mandal:9» Sukta:108» Mantra:12 | Ashtak:7» Adhyay:5» Varga:19» Mantra:2 | Mandal:9» Anuvak:7» Mantra:12


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अमर्त्यः) अमरणधर्मा परमात्मा (वृषा) जो सब कामनाओं की वृष्टि करनेवाला है, वह (जनयन्) अपनी ज्योति को प्रकाश करता हुआ (विजज्ञे) जायमान कथन किया जाता है, (ज्योतिषा) अपनी ज्ञानरूपी ज्योति से (तमः, प्रतपन्) अज्ञान को दूर करता हुआ (कविभिः) विद्वानों से वर्णित (निर्णिजम्) निराकार के पद को (दधे) धारण करता है और (अस्य, दंससा) इसके अपूर्व कर्मों से (त्रिधातु) तीनों गुणों की आश्रयतभूत प्रकृति स्थिर है, (सः) उक्तगुणसम्पन्न परमात्मा (सुस्तुतः) भली-भाँति उपासना किया हुआ सद्गति प्रदान करता है ॥१२॥
Connotation: - इस मन्त्र में परमात्मा को जायमान उपचार से कथन किया गया है, वस्तुतः नहीं, वास्तव में वह अजर, अमरादि गुणसम्पन्न है। वह अपने उपासकों की कामनाओं को पूर्ण करनेवाला और उनको सद्गति का प्रदाता है ॥१२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अमर्त्यः) अमरणधर्मा स परमात्मा (वृषा) सर्वकामनाप्रदः (जनयन्) स्वज्योतिः प्रकाशयन् (विजज्ञे) जायमान उच्यते (ज्योतिषा) स्वज्ञानज्योतिषा च (तमः, प्रतपन्) अज्ञानं दूरीकुर्वन् (कविभिः) विद्वद्भिः वर्णितः (निर्णिजम्) निराकारपदं (दधे) दधाति (अस्य, दंससा) अस्यापूर्वकर्मणा (त्रिधातु) गुणत्रयाश्रयभूता प्रकृतिः स्थिरास्ति (सः) इत्थम्भूतः परमात्मा (सुस्तुतः) सम्यगुपासितः सद्गतिं प्रददाति ॥१२॥