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यद॒द्य वां॑ नासत्यो॒क्थैरा॑चुच्युवी॒महि॑ । यद्वा॒ वाणी॑भिरश्विने॒वेत्का॒ण्वस्य॑ बोधतम् ॥

English Transliteration

yad adya vāṁ nāsatyokthair ācucyuvīmahi | yad vā vāṇībhir aśvinevet kāṇvasya bodhatam ||

Pad Path

यत् । अ॒द्य । वा॒म् । ना॒स॒त्या॒ । उ॒क्थैः । आ॒ऽचु॒च्यु॒वी॒महि॑ । यत् । वा॒ । वाणी॑भिः । अ॒श्वि॒ना॒ । ए॒व । इत् । का॒ण्वस्य॑ । बो॒ध॒त॒म् ॥ ८.९.९

Rigveda » Mandal:8» Sukta:9» Mantra:9 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:31» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:9


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः उसी अर्थ को कहते हैं।

Word-Meaning: - (नासत्या) हे नासत्यद्वय हे सत्यस्वभाव राजा तथा अमात्यादिवर्ग (यद्) यद्यपि (अद्य) आज हम सब मिलकर (उक्थैः) विविध स्तोत्रों से (वाम्) आप दोनों की (आचुच्युवीमहि) कामना करते हैं (यद्वा) यद्वा (वाणीभिः) नाना प्रकार की स्व-स्व भाषाओं से आपकी कामना करते हैं तथापि (अश्विना) हे अश्विद्वय (काण्वस्य+एव+इत्) तत्त्ववित् पुरुष की ही स्तुतियों को आप प्रथम विशेषरूप से (बोधतम्) समझें या स्मरण रक्खें ॥९॥
Connotation: - सर्व प्रजाएँ राजा का सम्मान करें, वह भी सर्वप्रजाओं का सम्मान करता हुआ तत्त्ववित् पुरुष की विशेषतया पूजा करे ॥९॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (नासत्या) हे सत्यवादिन् ! (यत्, अद्य) जो इस समय (वाम्) आपको (उक्थेभिः) वेदवाणियों से (आचुच्युवीमहि) आह्वान करें (यद्, वा, अश्विना) हे व्यापकशक्तिवाले ! (वाणीभिः) जो संकल्पित वाणियों द्वारा आह्वान करें तो (एव, इत्) निश्चय ही (काण्वस्य) विद्वानों के पुत्रों के आह्वान को (बोधतम्) आप जानें ॥९॥
Connotation: - हे सत्यसङ्कल्प सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! हम विद्वान् लोग वेदों के स्तोत्रों द्वारा तथा निज वाणियों द्वारा आपका आह्वान करते हैं, आप हमारे इस भाव को जानकर अवश्य हमारे यज्ञ को प्राप्त हों ॥९॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तमेवार्थमाह।

Word-Meaning: - हे नासत्या=नासत्यौ=सत्यस्वभावौ। यद्=यद्यपि अद्य वयं सर्वे मिलित्वा। उक्थैः=स्तोत्रैः। वाम्=युवाम्। आचुच्युवीमहि=कामयामहे। यद्वा=पक्षान्तरे। वाणीभिर्विविधाभिः स्वस्वभाषाभिः। युवां कामयामहे। हे अश्विना=अश्विनौ ! तथापि। काण्वस्यैवेत्=तत्त्वज्ञस्यैव स्तुतिम् विशेषतया प्रथमम्। बोधतम्=अवगच्छतम् ॥९॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (नासत्या) हे सत्यवादिनौ ! (यत्, अद्य) यत् इदानीम् (वाम्) युवाम् (उक्थेभिः) वेदवाग्भिः (आचुच्युवीमहि) आह्वयामः (अश्विना) हे अश्विनौ ! (यद्, वा) यदि वा (वाणीभिः) स्वोक्तवाग्भिः (एव, इत्) निश्चयमेव (काण्वस्य) कण्वपुत्रस्य (बोधतम्) जानीतम् ॥९॥