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किम॒न्ये पर्या॑सते॒ऽस्मत्स्तोमे॑भिर॒श्विना॑ । पु॒त्रः कण्व॑स्य वा॒मृषि॑र्गी॒र्भिर्व॒त्सो अ॑वीवृधत् ॥

English Transliteration

kim anye pary āsate smat stomebhir aśvinā | putraḥ kaṇvasya vām ṛṣir gīrbhir vatso avīvṛdhat ||

Pad Path

किम् । अ॒न्ये । परि॑ । आ॒स॒ते॒ । अ॒स्मत् । स्तोमे॑भिः । अ॒श्विना॑ । पु॒त्रः । कण्व॑स्य । वा॒म् । ऋषिः॑ । गीः॒ऽभिः । व॒त्सः । अ॒वी॒वृ॒ध॒त् ॥ ८.८.८

Rigveda » Mandal:8» Sukta:8» Mantra:8 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:26» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:8


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SHIV SHANKAR SHARMA

सबसे राजा सम्माननीय है, यह शिक्षा इससे देते हैं।

Word-Meaning: - (किम्) क्या (अस्मत्) हमसे बढ़कर (अन्ये) अन्य विद्वान् (स्तोमैः) निज-२ स्तोत्रों से (अश्विना) प्रजाओं के मन में सुव्यापक राजा और अमात्य की (पर्य्यासते) उपासना करते हैं ? वहीं हे अश्विद्वय ! (कण्वस्य) कमनीय विद्वान् का (पुत्रः) पुत्र (ऋषिः) कवि (वत्सः) गोवत्सवत् अनुकम्पनीय यह जन (गीर्भिः) स्ववचनों से आप दोनों के यशों को (अवीवृधत्) बढ़ाता है, अतः इस जन पर कृपा कीजिये ॥८॥
Connotation: - जो राजा प्रजारक्षण व्रत को पालता है, वह बड़ी उत्सुकता और हर्ष के साथ−विद्वानों या मूर्खों−सबसे पूजा जाता है ॥८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अश्विना) हे व्यापक ! (अस्मत्, अन्ये) हम लोगों से अन्य उपासक (किम्) क्या (स्तोमेभिः) स्तोत्रों द्वारा (पर्यासते) आपका परिचरण करते हैं (कण्वस्य, पुत्रः) यह विद्वान् का पुत्र (ऋषिः) सूक्ष्मद्रष्टा (वत्सः) वत्सतुल्य उपासक (वाम्) आपको (गीर्भिः) यशःप्रकाशक वाणियों द्वारा (अवीवृधत्) बढ़ा रहा है ॥८॥
Connotation: - हे सर्वत्र विख्यात सेनाध्यक्ष तथा सभाध्यक्ष ! हम लोग आपका सबसे अधिक सत्कार करते और आपके यश का विस्तार करते हैं, इसलिये आप हमारे यज्ञ को प्राप्त होकर वेदविद्या का उपदेश करें ॥८॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

सर्वैर्राजा सम्माननीय इति शिक्षते।

Word-Meaning: - अश्विना=प्रजानां मनसि सुव्यापकौ राजामात्यौ ! अस्मदस्मत्तः। अन्ये=अपरे। स्तोमैः=स्वस्तोत्रैः। पर्य्यासते=परित आसते उपासते किम् ? नेत्यर्थः। हे अश्विनौ। कण्वस्य=कमनीयस्य विदुषः। पुत्रः। ऋषिः=कविः। वत्सः=गोवत्सवदनुकम्पनीयः। गीर्भिर्वचनैः। युवामेव। अवीवृधत्=वर्धयति। युवयोरेव कीर्तिं स्वस्तोत्रैर्वर्धयन्तीत्यर्थः ॥८॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अश्विना) हे व्यापकौ ! (अस्मत्, अन्ये) अस्मत्तोऽन्ये उपासकाः (किम्) किम् (स्तोमेभिः, पर्यासते) स्तोत्रैः परिचरन्ति (कण्वस्य, पुत्रः) विदुषां पुत्रः (ऋषिः) सूक्ष्मद्रष्टा (वत्सः) वत्सस्थानीयः उपासकः (वाम्) युवाम् (गीर्भिः) यशःप्रकाशकवाग्भिः (अवीवृधत्) वर्धयति स्म ॥८॥