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दि॒वश्चि॑द्रोच॒नादध्या नो॑ गन्तं स्वर्विदा । धी॒भिर्व॑त्सप्रचेतसा॒ स्तोमे॑भिर्हवनश्रुता ॥

English Transliteration

divaś cid rocanād adhy ā no gantaṁ svarvidā | dhībhir vatsapracetasā stomebhir havanaśrutā ||

Pad Path

दि॒वः । चि॒त् । रो॒च॒नात् । अधि॑ । आ । नः॒ । ग॒न्त॒म् । स्वः॒ऽवि॒दा॒ । धी॒भिः । व॒त्स॒ऽप्र॒चे॒त॒सा॒ । स्तोमे॑भिः । ह॒व॒न॒ऽश्रु॒ता॒ ॥ ८.८.७

Rigveda » Mandal:8» Sukta:8» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:26» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:7


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः उसी अर्थ को कहते हैं।

Word-Meaning: - (स्वर्विदा) हे सुखविज्ञान ज्ञाता राजा और अमात्य ! जिस कारण आप सुख-दुःख का अनुभव करनेवाले हैं, अतः प्रजाओं के भी सुख-दुःख जानकर यथोचित कीजिये, यह ध्वनि है। वे आप (दिवः१+चित्) क्रीड़ास्थान से अथवा (रोचना२द्+अधि) प्रकाशमान निज प्रसाद के ऊपर से कहीं आप होवें, वहाँ से (नः+आ+गतम्) हम प्रजाओं के निकट आवें (वत्सप्रचेतसा) हे पुत्रीकृत प्रजाओं पर दत्तचित्तो ! आप (धीभिः) धीमान् पुरुषों के साथ आवें। (हवनश्रुता) हे प्रजानिवेदनश्रोता ! (स्तोमैः) स्तोत्रों से प्रसादित होकर यद्वा स्तुतिकर्ता पुरुषों के साथ हम लोगों की रक्षा के लिये यहाँ आवें ॥७॥
Connotation: - प्रजाहितार्थ राजा अभिषिक्त होता है, अतः सर्व सुखों को त्याग प्रजारक्षण में अपने को नियुक्त करे ॥७॥
Footnote: १−द्यौः−दिव धातु के क्रीड़ा विजिगीषा आदि अनेक अर्थ हैं अतः क्रीड़ास्थान को भी द्यौ कहते हैं। २−रोचन−प्रकाशमान नृपभवन आदि ॥७॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (स्वर्विदा) हे द्युलोक की गति जाननेवाले (धीभिः, वत्सप्रचेतसा) अपनी बुद्धि से वत्ससदृश प्रजा के गुप्तरहस्य जाननेवाले (स्तोमेभिः, हवनश्रुता) स्तुतियों द्वारा हवनादि कर्म जाननेवाले ! आप (रोचनात्, दिवः, चित्) रोचमान द्युलोक से (नः) हमारे समीप (अध्यागन्तम्) शीघ्र आएँ ॥७॥
Connotation: - हे सेनाध्यक्ष तथा सभाध्यक्ष ! आप सब लोक-लोकान्तरों की विद्या, प्रजा के गुप्त रहस्य, यज्ञादि कर्म और वेदविद्या को भले प्रकार जाननेवाले हैं। कृपा करके हमारे यज्ञ में आवें और हम लोगों को उक्त विद्याओं का उपदेश करें ॥७॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तमेवार्थमाह।

Word-Meaning: - हे राजामात्यौ ! हे स्वर्विदा=स्वर्विदौ। यतो युवां स्वः सुखस्य ज्ञानस्य च विदौ=ज्ञातारौ स्थः। अतः प्रजानामपि सुखदुःखे विदित्वा यथोचितं कुरुतमिति ध्वन्यते। तौ युवाम्। दिवश्चित्=क्रीडास्थानान्। दिवु क्रीडाविजिगीषादिषु विद्यमानत्वाद्दीव्यति क्रीडति यत्र सा द्यौः=क्रीडागृहम्। तत्स्थानमपि परित्यज्य। तथा। रोचनाद् अधि=पञ्चम्यर्थानुवादी अधिः। रोचते परितः प्रकाशत इति रोचनं नृपप्रासादः। तस्मादपि स्थानात्। नोऽस्मान्। पालयितव्याः प्रजाः। आगतमागच्छतम्। हे वत्सप्रचेतसा=वत्सेषु पुत्रीकृतेषु प्रजाजनेषु प्रकृष्टध्यानौ धीभिर्धीमद्भिः पुरुषैः सहागच्छतम्। हे हवनश्रुता=प्रजानां हवनानाम्=प्रार्थनानामाह्वानानां च श्रोतारौ। स्तोमैः=स्तोत्रैः प्रसादितौ सन्तौ यद्वा स्तोमकृद्भिः सहागच्छतम् ॥७॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (स्वर्विदा) हे द्युलोकज्ञातारौ (धीभिः, वत्सप्रचेतसा) स्वबुद्धिभिः वत्सात्मकप्रजाज्ञातारौ (स्तोमेभिः, हवनश्रुता) स्तुतिद्वारा हवनज्ञौ ! युवाम् (रोचनात्, दिवः, चित्) रोचमानादन्तरिक्षात् (नः) अस्मान् (अध्यागन्तम्) अध्यागच्छतम् ॥७॥