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आ नो॑ यात॒मुप॑श्रु॒त्यश्वि॑ना॒ सोम॑पीतये । स्वाहा॒ स्तोम॑स्य वर्धना॒ प्र क॑वी धी॒तिभि॑र्नरा ॥

English Transliteration

ā no yātam upaśruty aśvinā somapītaye | svāhā stomasya vardhanā pra kavī dhītibhir narā ||

Pad Path

आ । नः॒ । या॒त॒म् । उप॑ऽश्रुति । अश्वि॑ना । सोम॑ऽपीतये । स्वाहा॑ । स्तोम॑स्य । व॒र्ध॒ना॒ । प्र । क॒वी॒ इति॑ । धी॒तिऽभिः॑ । न॒रा॒ ॥ ८.८.५

Rigveda » Mandal:8» Sukta:8» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:25» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:5


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः उसी अर्थ को कहते हैं।

Word-Meaning: - (अश्विना) हे शोभनाश्वयुक्त राजा और अमात्य ! आप दोनों (उपश्रुति) प्रजाओं की प्रार्थना को सुनने के लिये आइये और (सोमपीतये) सोमरस पीने को (नः) हम प्रजाओं के निकट (आ+यातम्) आवें तथा (कवी) हे महाविद्वानो ! (नरा) हे सर्वनेतारो ! आप (स्वाहा) विद्वानों की वाणी के (वर्धना) वर्धक होवें। तथा। (धीतिभिः) विविध क्रियाओं से=वाणिज्य की स्थापना समुद्र में नौकाचालन तथा नहरों को खोदवाना आदि कर्मों से (सोमस्य) पदार्थमात्र के (प्र) आप प्रवर्धक होवें ॥५॥
Connotation: - जो राज्य को स्वसम्पत्ति मानकर अयथार्थरूप से अर्थ को विनष्ट करते हैं, वे अनभिज्ञ राजा प्रजाओं को रक्षित नहीं कर सकते। अतः वैसी विपरीत बुद्धि को त्याग प्रजाभ्युदय के लिये सदा चेष्टा करें ॥५॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अश्विना) हे व्यापक ! (नः, उपश्रुति) हमारे यज्ञ में (सोमपीतये) सोमपान के लिये (आयातम्) आयें, आप (स्वाहा) वेदवाणी से (स्तोमस्य) स्तुतिकर्ता के (प्रवर्धना) बढ़ानेवाले (कवी) सूक्ष्मद्रष्टा तथा (धीतिभिः) अपनी प्रज्ञा से (नरा) संसार को चलानेवाले हैं ॥५॥
Connotation: - हे सर्वत्र सुविख्यात सेनाध्यक्ष तथा सभाध्यक्ष ! आप बुद्धिमान्, सूक्ष्मद्रष्टा और वेदविद्या के ज्ञाता हैं, सो हमारे यज्ञ को प्राप्त होकर हमको वेदविद्या का उपदेश करें ॥५॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तमर्थमाह।

Word-Meaning: - हे अश्विना=अश्विनौ=राजसचिवौ। उपश्रुति=उपश्रुत्यै= उपश्रयणाय=प्रजानां प्रार्थनाश्रवणाय। आयातम्। पुनः। सोमपीतये=सोमपानाय च। नोऽस्मान्। आयातमागच्छतम्। हे कवी=विद्वांसौ। हे नरा=नरौ=नेतारौ सर्वस्य। युवाम्। स्वाहा=वाण्याः। स्वाहेति वाङ्नाम। वर्धना=वर्धकौ भवतम्। तथा धीतिभिर्विविधाभिः क्रियाभिः। सोमस्य=पदार्थमात्रस्य। प्रवर्धना=प्रवर्धनौ भवतम् ॥५॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अश्विना) हे व्यापकौ ! (नः, उपश्रुति) अस्माकं यज्ञे (सोमपीतये) सोमपानाय (आयातं) आगच्छतम्, युवाम् (स्वाहा) वेदवाचा (स्तोमस्य) स्तोतुः (प्रवर्धना) प्रवर्धकौ (कवी) सूक्ष्मद्रष्टारौ (धीतिभिः) स्वबुद्धिभिः (नरा) नेतारौ स्थः ॥५॥