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आ नो॑ यातं दि॒वस्पर्यान्तरि॑क्षादधप्रिया । पु॒त्रः कण्व॑स्य वामि॒ह सु॒षाव॑ सो॒म्यं मधु॑ ॥

English Transliteration

ā no yātaṁ divas pary āntarikṣād adhapriyā | putraḥ kaṇvasya vām iha suṣāva somyam madhu ||

Pad Path

आ । नः॒ । या॒त॒म् । दि॒वः । परि॑ । आ । अ॒न्तरि॑क्षात् । अ॒ध॒ऽप्रि॒या॒ । पु॒त्रः । कण्व॑स्य । वा॒म् । इ॒ह । सु॒साव॑ । सो॒म्यम् । मधु॑ ॥ ८.८.४

Rigveda » Mandal:8» Sukta:8» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:25» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:4


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः उसी अर्थ को कहते हैं।

Word-Meaning: - (अधप्रिया) हे अधोलोकप्रिय हे अधःस्थित मनुष्यों के परमप्रिय राजा और अमात्य ! (दिवः+परि) द्युलोक से अथवा (अन्तरिक्षात्) आकाश से जहाँ हों, वहाँ ही से आप (नः) हमारे निकट (आ+यातम्) आवें (इह) यहाँ (वाम्) आप दोनों के लिये (कण्वस्य) विद्वान् जन का (पुत्रः) पुत्र (सोम्यम्) सोमयुक्त (मधु) मधु (सुषाव) बनाता है, अतः यहाँ आप आवें ॥४॥
Connotation: - जहाँ-२ शुभ कर्मों का अनुष्ठान होता हो, वहाँ-२ रक्षार्थ राजा और अमात्यादि वर्गों को जाना चाहिये ॥४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अधप्रिया) हे मध्यदेशप्रिय सेनाध्यक्ष तथा सभाध्यक्ष ! (दिवस्परि) द्युलोक से (नः, आयातम्) आप हमारे पास आइये (अन्तरिक्षात्, आ) तथा अन्तरिक्ष से आइये (इह) इस यज्ञसदन में (कण्वस्य, पुत्रः) विद्वान् का पुत्र (वाम्) आपके लिये (सोम्यम्, मधु) शोभन मधुर रस को (सुषाव) सिद्ध कर रहा है ॥४॥
Connotation: - हे यानों द्वारा अन्तरिक्ष में गमन करनेवाले सेनाध्यक्ष तथा सभाध्यक्ष ! आप अन्तरिक्ष से हम विद्वानों के यज्ञ को प्राप्त होकर हमारा सत्कार स्वीकार करें और हमको अन्तरिक्षलोकस्थ विद्या का उपदेश करके कृतार्थ करें ॥४॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तमर्थमाह।

Word-Meaning: - हे राजामात्यौ। दिवः परि। पञ्चम्यर्थानुवादी परिः। द्युलोकाद्वा अन्तरिक्षाद्वा। युवाम्। नोऽस्मान्। आयातम्। हे अधप्रिया=अधप्रियौ=अधोलोकप्रियौ। अस्माकं परमप्रियौ। इह=अस्मिन् स्थाने। वायुम्=वयोनिर्मितम्। कण्वस्य= कमनीयस्य विदुषः पुत्रः। सोम्यम्=सोमयुक्तं मधु। सुषाव=सुनोति। अतो युवामत्रागच्छतम् ॥४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अधप्रिया) हे मध्यदेशप्रियौ सेनाध्यक्षसभाध्यक्षौ ! (दिवस्परि) द्युलोकात्, (नः, आयातम्) अस्मानागच्छतम् (अन्तरिक्षात्, आ) अन्तरिक्षाच्च आयातम् (इह) अस्मिन्यज्ञे (कण्वस्य, पुत्रः) विदुषां पुत्रः (वाम्) युवयोः (सोम्यम्, मधु) शोभनं मधुररसम् (सुषाव) सुतवान् ॥४॥