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त्रीणि॑ प॒दान्य॒श्विनो॑रा॒विः सान्ति॒ गुहा॑ प॒रः । क॒वी ऋ॒तस्य॒ पत्म॑भिर॒र्वाग्जी॒वेभ्य॒स्परि॑ ॥

English Transliteration

trīṇi padāny aśvinor āviḥ sānti guhā paraḥ | kavī ṛtasya patmabhir arvāg jīvebhyas pari ||

Pad Path

त्रीणि॑ । प॒दानि॑ । अ॒श्विनोः॑ । आ॒विः । सन्ति॑ । गुइहा॑ । प॒रः । क॒वी इति॑ । ऋ॒तस्य॑ । पत्म॑ऽभिः । अ॒र्वाक् । जी॒वेभ्यः॑ । परि॑ ॥ ८.८.२३

Rigveda » Mandal:8» Sukta:8» Mantra:23 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:29» Mantra:3 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:23


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः उसी अर्थ को कहते हैं।

Word-Meaning: - जिन (अश्विनोः) राजा और अमात्य वर्गों के (त्रीणि) तीन (पदानि) पद अर्थात् राजसभा, विद्यासभा और धर्मसभारूप स्थान (गुहा+परः) गुप्त नहीं हैं अर्थात् जिन तीन स्थानों की कार्य्यवाही सर्व प्रजाओं पर विदित है, वे ही (ऋतस्य+कवी) सत्यनियम के तत्त्वविद् हैं और वे ही उनहीं (पत्मभिः) राजसभा आदि पदों से (जीवेभ्यः परि) सर्व जीवों के ऊपर (अर्वाग्) सबके सामने पूज्य होते हैं ॥२३॥
Connotation: - स्वसभ्यों के साथ जो राजसभा, विद्यासभा और धर्मसभा स्थापित करके उनकी सम्मति से राज्यकार्य करता है, वही सर्वत्र पूज्य होता है ॥२३॥
Footnote: यह अष्टम मण्डल का अष्टम सूक्त और २९वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अश्विनोः) सेनाध्यक्ष और सभाध्यक्ष के (त्रीणि, पदानि) विजय, शान्तिस्थापन तथा न्यायकरण ये तीन पद (गुहा, परः) गुहाप्रविष्ट के समान गूढ़ (आविः, सन्ति) पीछे कार्यकाल में प्रकट हो जाते हैं (कवी) वे दोनों विद्वान् (जीवेभ्यः, परि) सब प्रजाओं के ऊपर (ऋतस्य, पत्मभिः) सत्य के मार्ग से (अर्वाक्) अभिमुख हों ॥२३॥
Connotation: - हे सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! विजय, शान्ति तथा न्याय से सुभूषित आप विद्वानों और अन्य सब प्रजाजनों की रक्षा में सत्य को अवलम्बन करते हुए प्रवृत्त हों अर्थात् सत्य के आश्रित होकर ही प्रजा का रक्षण तथा शासन करें ॥२३॥ यह आठवाँ सूक्त और उनतीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तमेवार्थमाह।

Word-Meaning: - ययोः। अश्विनोः=राजामात्ययोः। त्रीणि पदानि=त्रिसंख्याकानि पदानि=राजसभाविद्यासभा- धर्मसभारूपाणि। गुहा परः=गुहायाः परः=प्रकाशस्थाने= प्रत्यक्षाणीत्यर्थः। आविः सान्ति=आविः सन्ति=आविर्भवन्ति “सान्तीत्यत्र छान्दसो दीर्घः” तौ। ऋतस्य=सत्यनियमस्य। कवी=क्रान्तदर्शिनौ=तत्त्वविदौ स्तः। पुनस्तौ। तैरेव। पत्मभिः=पादैः। जीवेभ्यः परि=परिरुपर्य्यर्थः सर्वेषां जीवानामुपरि। अर्वागभिमुखं यथा तथा पूज्यौ भवतः ॥२३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अश्विनोः) सेनाध्यक्षसभाध्यक्षयोः (त्रीणि, पदानि) विजयशान्तिस्थापनन्यायकरणरूपाणि त्रीणि पदानि (गुहा, परः) गुहायां स्थितानि इव (आविः, सन्ति) पश्चादाविर्भवन्ति (कवी) तौ विद्वांसौ (जीवेभ्यः, परि) जीवेषु (ऋतस्य, पत्मभिः) सत्यस्य मार्गैः (अर्वाक्) अभिमुखौ स्याताम् ॥२३॥ इत्यष्टमं सूक्तमेकोनत्रिंशो वर्गश्च समाप्तः ॥