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प्रास्मा॒ ऊर्जं॑ घृत॒श्चुत॒मश्वि॑ना॒ यच्छ॑तं यु॒वम् । यो वां॑ सु॒म्नाय॑ तु॒ष्टव॑द्वसू॒याद्दा॑नुनस्पती ॥

English Transliteration

prāsmā ūrjaṁ ghṛtaścutam aśvinā yacchataṁ yuvam | yo vāṁ sumnāya tuṣṭavad vasūyād dānunas patī ||

Pad Path

प्र । अ॒स्मै॒ । ऊर्ज॑म् । घृ॒त॒ऽश्चुत॑म् । अश्वि॑ना । यच्छ॑तम् । यु॒वम् । यः । वा॒म् । सु॒म्नाय॑ । तु॒स्तव॑त् । व॒सु॒ऽयात् । दा॒नु॒नः॒ । प॒ती॒ इति॑ ॥ ८.८.१६

Rigveda » Mandal:8» Sukta:8» Mantra:16 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:28» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:16


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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनः उसी अर्थ को कहते हैं।

Word-Meaning: - (अश्विना) हे प्रजाओं के हृदय में व्याप्त राजा और अमात्य ! (यः) जो विद्वान् (सुम्नाय) सुख और विज्ञान की प्राप्ति के लिये (वाम्) आप दोनों से (तुष्टवत्) निवेदन करे (दानुनस्पती) हे दान के अधिपति, हे महादानी धनस्वामी (वसूयात्) जो सज्जन धन की कामना करे (अस्मै) इस स्तुतिकर्त्ता जन को (ऊर्जम्) पूर्णबल का साहाय्य और (घृतश्च्युतम्) घृतसंयुक्त अन्न (युवम्) आप दोनों (प्र+यच्छतम्) देवें ॥१६॥
Connotation: - जो कोई विद्यादि वृद्धि के लिये पाठशाला आदि भवन बनावे और जो कोई सुजन धर्मप्रचारादि शुभ कर्म करे, वह राज्य की ओर से पालनीय है ॥१६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अश्विना) हे व्यापक (दानुनस्पती) दान देने में स्वतन्त्र ! (युवम्) आप (अस्मै) उसके लिये (ऊर्जम्) बलोत्पादक (घृतश्चुतम्) स्नेहवर्धक इष्ट पदार्थ को (प्रयच्छतम्) दें (यः) जो (सुम्नाय) सुख के लिये (तुष्टवत्) आपकी स्तुति करता अथवा (वसूयात्) धन की कामना करता है ॥१६॥
Connotation: - हे दानशील सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! आप यजमान के लिये उत्तमोत्तम इष्ट पदार्थ प्रदान करें, जो आपके प्रति धन की कामना करता है ॥१६॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

पुनस्तमेवार्थमाह।

Word-Meaning: - हे अश्विना=अश्विनौ। यः=विद्वान्। सुम्नाय=सुखाय वा विज्ञानाय वा। वाम्=युवाम्। तुष्टवत्=स्तुयात्=स्तुतिं कुर्य्यात्। हे दानुनस्पती=दानस्य अधिपती। यश्च वसूयात्=आत्मनो वसुधनमिच्छेदिति वसूयात्। अस्मै= स्तुतिसम्पादकाय जनाय। युवम्=युवाम्। ऊर्जम्=बलम्। घृतश्च्युतम्=घृतसंयुतमन्नञ्च। प्रयच्छतम्=प्रदत्तम् ॥१६॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अश्विना) हे अश्विनौ (दानुनस्पती) दानस्वामिनौ ! (युवम्) युवाम् (अस्मै) अस्मै वक्ष्यमाणाय (ऊर्जम्) बलकरम् (घृतश्चुतम्) स्नेहोत्पादकमिष्टम् (प्रयच्छतम्) दत्तम् (यः) यो जनः (सुम्नाय) सुखाय (तुष्टवत्) स्तुवीत (वसूयात्) धनं वा कामयेत ॥१६॥