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एक॑या प्रति॒धापि॑बत्सा॒कं सरां॑सि त्रिं॒शत॑म् । इन्द्र॒: सोम॑स्य काणु॒का ॥

English Transliteration

ekayā pratidhāpibat sākaṁ sarāṁsi triṁśatam | indraḥ somasya kāṇukā ||

Pad Path

एक॑या । प्र॒ति॒ऽधा । अ॒पि॒ब॒त् । सा॒कम् । सरां॑सि । त्रिं॒शत॑म् । इन्द्रः॑ । सोम॑स्य । का॒णु॒का ॥ ८.७७.४

Rigveda » Mandal:8» Sukta:77» Mantra:4 | Ashtak:6» Adhyay:5» Varga:29» Mantra:4 | Mandal:8» Anuvak:8» Mantra:4


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SHIV SHANKAR SHARMA

अब राजकर्त्तव्य कहते हैं।

Word-Meaning: - जब राजा (जज्ञानः) अपने कर्म सदाचार और विद्या आदि सद्गुणों से सर्वत्र सुप्रसिद्ध हो और (नु) जब (शतक्रतुः) बहुत वीरकर्म करने योग्य हो, तब (मातरम्) व्यवस्थानिर्माणकर्त्री सभा से (इति) यह (पृच्छत्) जिज्ञासा करे कि हे सभे सभास्थ जनो ! (इह) इस लोक में (के+उग्राः) कौन राजा महाराज अपनी शक्ति से महान् गिने जाते हैं (के+ह+शृण्विरे) और कौन यश प्रताप आदि से सुने जाते हैं अर्थात् विख्यात हो रहे हैं ॥१॥
Connotation: - राजा को उचित है कि सभा के द्वारा देश के सम्पूर्ण वृत्तान्त और दशाएँ अवगत करे और अपने शत्रु-मित्र को पहिचाने ॥१॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

अथ राजकर्त्तव्यमाह।

Word-Meaning: - यदा राजा जज्ञानः=स्वकर्मणा सर्वत्र प्रसिद्धो भवेत्। पुनः शतक्रतुः=बहूनि च कर्माणि कर्तुं शक्नुयात्। तदा। मातरम्=व्यवस्थानिर्मात्रीं सभाम्। इति वक्ष्यमाणम्। पृच्छत्=पृच्छेत्=जिज्ञासेत्। हे सभे ! इह लोके। के जनाः। उग्राः=स्वकर्मणा महान्तः। के+ह=के च। शृण्विरे=प्रसिद्धतराः सन्तीति ॥१॥